Saturday, June 25, 2011

देश की ये भावी संतान.........


 शराब के चस्के की लपेट में स्कूली लड़कियां 
दो दिन पहले India T V न्यूज़ चैनल पर एक समाचार   ने चौका दिया . इंदौर के एक प्रतिष्टित स्कूल की 12 क्लास की 3 स्टुडेंट्स  क्लास में शराब पीते हुए पकड़ी गई .
वाकया जब सामने आया जब एक लड़की तबियत अचानक खराब हो गई और टीचर ने उसकी तबियत के बारे में जब पूछा तो पता  की ३ लड़कियों ने क्लास में वोदका पानी की बोतल में भर के क्लास में लेकर आई और हाफ टाइम में पानी में मिलकर पी रही थीं. एक लड़की को शराब नहीं पची और उसने उलटी कर दी जिसके कारण शराब की गंध पूरे क्लास  में फ़ैल गई और उनकी चोरी पकड़ी गई.
कुछ तथ्य ध्यान देने योग्य हैं:-
* जो लड़की शराब लाई उसके पिता की शराब की दुकान है. वो वोदका की बोटल लेकर क्लास में आई थी.
* शराब पानी पीने वाली बोतल में लेकर आई थी.
* शराब पानी में मिला कर पी जा रही थी.
* यदि एक लड़की  की तबियत ख़राब नहीं होती तो पता ही नहीं चलना था की ये गोरखधंधा कब से चल रहा था और ये जानकारी कभी भी दुनिया के सामने नहीं आ पाती कि स्कूलों में लड़के तो अभी तक शराब पीते अब लड़कियां भी उसी राह पर चल पड़ी हैं.
* स्कूल कि मैनेजमेंट कमेटी ने उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू कर दी है. और तीनों छात्राओं को निष्कासित कर दिया है.

ये तो हुई भारत के एक स्कूल कि कहानी  और स्कूलों कि भी कहानी भी यही होगी........?? ये यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर खोजना अभी बाकि है.

आजकल छोटे स्कूली बच्चों में नशे कि लत्त इस हद तक है कि जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

#बच्चे thinner , nail polish remover , balm जैसे आसानी से उपलब्ध नशे के तरीके आजमा रहे हैं. जिन्हें सूंघ कर  नशे का आनंद ले रहे हैं .
#ये  आसानी से मिलने वाले साधन हैं और कम पैसे में मिल जाते हैं.
# बच्चों में ये आदत एक दूसरे के साथ मित्रता बढ़ने का साधन बनती जा रही हैं.

बच्चों में अगर इस आदत ने पावँ  पसर लिए हैं तो भी चौकन्ना होने कि जरुरत है. यदि आपका बच्चा सुस्त नजर आता है, बात-बात में खीज जाता हो, आपकी बात पर गुस्सा करता है या फिर पैर पटकता है , कमरे में स्वयं को बंद कर ले, अकेले रहना पसंद करे तो समझ ले उसके साथ कुछ भी ठीक नहीं है. उससे नरमी से पेश आयें और ये जानने कि कोशिश करें कि कहीं वो किसी नशे का आई तो नहीं बनता जा रहा.

ये एक ऐसे समाज कि तस्वीर पेश कर रहा जहाँ ऐसा लग रहा है मानों भारतीय समाज बहुत  तेजी से टूटने कि कगार पर आ चुका है.




Wednesday, June 22, 2011

हम चूहे-बिल्ली है ...................या इन्सान........??

कब तक दुनिया की नजरों में हम कीड़े-मकोड़े रहंगे................?

कल आज-तक न्यूज़ चैनेल में एक समाचार ने रोंगटे खड़े कर दिए, कोयम्बतूर की गरीब महिलाओं पर ब्रेस्ट-कैंसर की दवाई का clinical trial हुआ , जिसमें बहुत सारी महिलाओं की तबियत बिगड़ गई. हर महिला को पहले 10,000 रुपये दिए गए किन्तु इस बात से अन्जान रखा गया कि उन  पर किसी दावा का परीक्षण किया जा रहा है.
* जब भी किसी दावा का ट्रायल किया जाता है  तो विषय में जानकारी देना आवश्यक होता है और प्रिस्खन के दौरान पूरा ध्यान रखा जाता है.पर इन महिलाओं को इससे अन्जान रखा गया था.

* 2005 तक तक भारत के लोगों को गिनी-पिग नहीं बनाया जा सकता था किन्तु उसके बाद नियम ढीले कर दिए गए और उसके बाद तो दुनिया कि लगबग 5 -10 % दवाओं का ट्रायल भारत में ही होने लगा है. 
* जब भी दवाओं का ट्रायल होता है तो अस्पताल कि ethics committee से अनुमति लेने के बाद ही किया जा सकता है और भारत में आज तक कोई भी काम बिना नियमों कि धज्जियाँ उड़ाए किया ही नहीं जा सकता है. यहाँ पर भी नियमों  को तक पर रख दिया गया.

* भोपाल और इंदौर जैसे नगरों से इसी तरह कि ख़बरें छन-छन के आती रहती है पर क्या हुआ..? कुछ नहीं.......! 
* भारत में इन दवाओं का ट्रायल जानवरों के बाद इंसानों पर करने के लिए के लिए बेहद आसान है क्योंकि यहाँ कि सरकार कि निगाह में इन्सान कि जान कि कीमत कुछ भी नहीं है.

* जिन दवाओं का ट्रायल भारत में होता है उसका खर्चा पूरी दुनिया कि अपेक्षा यहाँ  60 % सस्ता पड़ता है और सरकारी नियमों कि अनदेखी तो जग जाहिर है. अमरीका जैसे देश ने तो दवाओं के ट्रायल को अपने देश में लगभग बंद कर दिया है क्योंकि वो अपने देशवासियों कि जन जोखिम में नहीं डालना चाहता क्या भारत में आप इस बात कि कल्पना भी कर सकते हैं..??

* जिन दवाओं का ट्रायल भारत में होता है और जिनके लिए भारतियों कि जन जोखिम में डाली जा रही है वे दवाएं हमारे  लिए अनुपलब्ध रहती हैं केवल अमरीका तथा यूरोप जैसे देशों के लिए उपलब्ध रहती हैं.

ये भारत है जहाँ कुछ भी कभी भी किया जा सकता है. है हो भारत......!!









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