Monday, December 31, 2012

गुजरते साल २०१२ कि







गुजरते साल २०१२ कि बिदाई बेला और आने वाले साल २०१३ कि भोर में...





साल २०१२ के गुजरने में केवल कुछ २४-२५ मिनिट का समय ही बाकि है. ये साल भी गुजर जाने को है पर ये साल का आखरी पल बीते सालों से कुछ क्या बहुत कुछ अलग है, साल के इस पल के कुछ दिन पहले लगता है भारत के आने वाले कल कि सामाजिक और राजनीतिक परिधृश्य को बदल देने वाला होगा. किसी मासूम कि शहादत साल के गुजरते गुजरते सदियों से सोये हुए भारत को झकझोर कर जगा गई और भारत के लोगों को ये जिम्मेदारी दे गई कि वे नारी कि एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में सम्मान करें और उसके सम्मान कि रक्षा भी करें. आज गुजरते हुए  साल २०१२ कि बिदाई बेला में और आते हुए साल २०१३ कि पास आती भोर में सम्पूर्ण भारत के वासी ये संकल्प ले कि वे हर व्यक्ति  के  आत्मसम्मान के साथ जीने का हक दे किसी का ये हक किसी से न छिना जाये.
 क्या आपको नहीं लगता कि 'दामिनी' की शहादत किसी भी तरह से जाया नहीं जानी चाहिए। क्योंकि अगर ऐसा हो गया तो आने वाली नस्लों को हम शर्मिंदा करेंगे और नारी को सम्मान से सिर उठा के जीने का मौका नहीं दे पाएंगे। हमें यह नहीं भूलना चाहिए की हम अपने वैचारिक दोगलेपन में नारी को 'देवी' तो माने बैठे हैं पर उसे इंसान मानने  से आज भी कतराते हैं, हर घर में नारी अस्तित्वमान है और उसका सम्मान और उसकी मर्यादा की रक्षा करना हर नागरिक का कर्तव्य है, इसकी शुरुआत घर से ही हो तभी हम वास्तविक  में भारत का सम्मान कर पाएंगे।









Wednesday, December 12, 2012

12.12.12 ... और कितने बारह ...???

12.12.12 ...  और कितने बारह ...???





 आज का दिन ऐतिहासिक बनने वाला है  ऐसा media के भिन्न प्रचार माध्यमों इतना प्रचारित और प्रसारित कर दिया है कि मन का हर कोना 12-12 हो गया है। सुबह- सुबह जब समाचार  पत्र हाथ में आया तो जैसे ही दृष्टी पहले पन्ने पर गई तो पूरा पन्ना ही 12मय हुआ पड़ा था , आज के दिन लोग शादी,निकाह  marriage जो भी बन पड़ रहा है पूरी एड़ी -चोटी का जोर लगा कर करवा रहे हैं। आज तो कुछ भी कहो पण्डित, पादरी और मौलवी की चाँदी ही चाँदी है,याने दसों अंगुलियाँ घी में और सिर कढ़ाई में। आज के दिन ये सब अपनी जेबें भरने में लगे होंगे और आज का दिन तो इन्ही का मान  के चलिए। ये तो हुई शादी याने  के बसंत की बात अब इसके बाद के अगले कदम की बात भी हो जाए। याने शादी तो हुई तो अगली पीढ़ी की जिम्मेदारी भी जरुरी हो जाती है। चलिए इसकी तैयारियों के बारे में भी media से ही जान पाए और ये भी पता चल गया कि दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच चुकी  है और हम आज भी अनाड़ी के अनाड़ी ही रह गए।

अस्पतालों में बच्चों की dilevery आज के दिन करवाने के लिए माता-पिता doctors को मुँह माँगी फ़ीस देने को तैयार हैं और धन्य है इस धरती की माएँ जो अपने जीवन को दाव पर लगाकर गुणवान संतान को जन्म देने के लिए तैयार हो गई हैं और धन्य हैं वो पिता जो इस महान कार्य के लिए अपनी तिजोरियों का मुह खोले खड़े हैं और doctors  की तो पूछो ही मत, आज तो उनकी सोना-चाँदी -हीरा-मोती सब कुछ है। हो भी क्यों न पंडितों ने आज के दिन पैदा होने वाली संतानों को सर्वगुण सम्पन्न पहले से ही  घोषित कर दिया है। अब आप ही बताएं कि यह दिन ऐतिहासिक हुआ कि नहीं ...?

अपनी आने वाली संतान के लिए लोग क्या-क्या कर गुजर रहें हैं आज के दिन ये तो हमने ख्वाब में भी नहीं सोचा था और हमें आज के दिन दुनिया में आने वाले नौनिहालों की किस्मत पर रश्क हो रहा है और हमारे दिल से एक ठंडी आह निकल आई की काश  ...! हम भी आज के दिन जन्म ले पाते क्योंकि अब आज के बाद तो ये दिन हजारों सालों में भी नहीं आने वाला और इस बात के तम्मनाई  होकर हम अपनी आत्मा को अंतरिक्ष में भटकने के लिए नहीं छोड़ सकते थे। 

अब हमारे लिए परशानी का सबब ये हो गया है कि हम ऐसा क्या करें ...??? कि  ये दिन हमारा नाम इतिहास में न दर्ज करवा सके पर इतना तो हो ही सके  है किहम इसे अपने  लिए कम से कम एतिहासिक तो बना सकें ...!!?? सुबह से शाम होने को आई और हमारा आज सारा दिन ही इस बात पर विचार करने में निकल गया किहम ऐसा क्या करें कि  हमारा ये दिन यादगार  ...अरे नहीं ...!! कम से कम ऐतिहासिक तो बन सके क्योंकि हम कोई मशहूर हस्ती तो है नहीं ...!! जिसे ये दिन celeberate करने का न्यौता मिलेगा या फिर कोई हमारे लिए इस दिन को ऐतिहासिक बना दे ...?? अब तो ऐसा है कि हमने अपनी सोच के दरवाजे बंद कर लिए हैं और   अगर आप से हो सके तो हमारे लिए कोई सुझाव ही बता दें क्योंकि अभी भी कुछ घंटे बाकि हैं इस दिन के खात्मे में .... पर हाँ और कुछ तो नहीं हुआ, सुबह-सुबह जब मै रोजाना सैर को जाती हूँ तो वैसे ही आज भी सुबह निकली थी तब एक बूढी अम्मा चौरस्ते के मंदिर के दालान पर बैठी थी और वो ठण्ड से ठिठुर रही थी, मुझे ये देखकर अच्छा नहीं लगा और तुरंत घर वापस लौट कर माँ को बताया तो वे अपना एक स्वेटर लेकर उसे दे आई और साथ ही उसे कुछ रुपये दिए ताकि वो कुछ लेकर खा सके। मुझे पता था माँ ये सुनकर जरुर कुछ न कुछ जरुर करेंगी। माँ  की दरियादिली ने मेरे मन में इस विश्वास को और भी पक्का कर दिया कि चाहे कुछ भी अच्छाई कभी ख़त्म नहीं हो सकती।

पर ...मेरी सोच अभी भी वही  अटकी है कि ऐसा क्या किया जाये कि 12.12.12 मेरे लिए भी ऐतिहासिक दिन साबित हो ....क्या आपके पास कोई idea  है तो कृपया रात के 12 बजे से पहले जरुर बता दें ... भगवान् आपका जरुर भला करेगा।  


                                                                  वीणा सेठी ...................................................................................................................................................................