Wednesday, July 23, 2014

ऐ...!मेरी सरकार;

..!मेरी सरकार;

1
महँगाई रही है मार;
जनता लगा रही गुहार;
जागो ऐ...!मेरी सरकार,
अब मत करो आत्याचार.
2
टमाटर हो गया है 80 रु किलो'
सूंघ के रखूँ या ईस्तमाल करूँ..?
बता ऐ...!मेरी सरकार?
3
सब्जियों के दाम तो देख;
आसमान की ओर चले;
क्याकार और कैसे पकड़ूं .?
अब तू ही बता ऐ मेरी 
सरकार.

4
तूने सपना दिखाया था;
"अच्छे दिन आएँगे"...
पर लगता है वो सपना था;
आँख खुली और टूट गया.
अब तू ही बता ऐ मेरी सरकार?
अच्छे दिन कब आप लाएँगे...?
5
तूने जो कड़वी दवाई दी;
उसे नीलकंठ सा रख;
"अच्छे दिनों की आस के पन्छि"
को आसमान में ताकें हूँ;
और क्या करूँ...क्या करूँ...?
अब तुझे ही बताना होगा ऐ सरकार...

 वीणासेठी .................................................................................…………………………………………। 

Monday, March 17, 2014

कविता



 होली का त्यौहार





 


आया होली का त्यौहार,
उमड़ी रंगों की बहार.



देखो कैसी बरस रही...
प्रेम की बौछार.
सबके दिन सुख के आयें
हर दिल में हो रही
ऐसी उमीदों की बौछार.



अपने मितवा संग खेलू होली,
हर दिल की यही पुकार.




सबके मन को दे जाये होली
इस बरस सुकून-ओ-करार ;
हमारी यही कमाना है.
देखो आया होली का त्यौहार.

 

Wednesday, February 19, 2014

ठण्ड का कहर ...

   ठण्ड का कहर ...
 
आज पूरी दुनिया में बर्फ़बारी ने जिस तरह से हिमयुग कि दस्तक कैसी हो सकती है  …?? का एहसास करवाया है वह शरीर में सिरहन पैदा कर गया है , यदि वास्तव में ऐसा हो गया  .... ?? तो क्या होगा  …?? अब सोचने का वक्त आ गया है कि प्रकृति के साथ जो खिलवाड़ हमने किया है उसका खामियाजा तो हमें ही भुगतना होगा।
 
पूरे भारत को ठण्ड ने ठिठुरा दिया है और लगता है शब्द मानों मुँह से बाहर का रास्ता जैसे-तैसे पकड़ते हैं और जम कर जाम हो जाते हैं. अब कडकडाती ठण्ड हो और धुन्ध ना छाई हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता. 
 
‘धुन्ध’ भी कैसी समदर्शी है किसी को भी अपने में समेट लेती है बिना किसी भेदभाव के,चाहे हम इंसान कितना भी भेदभाव कर लें.
 
धुन्ध कि इक खासियत ये भी है कि इसमें आप आसानी से छुप सकते हैं और चाहें तो कुछ फूट कि दूरी तक अपने अस्तित्व को लोगों से छुपा भी सकते हैं.
 
पहाड़ों पर तो धुन्ध का नजारा देखने लायक होता है, ऐसा लगता है मानो आसमान और धरती का मिलन कहाँ शुरू हो रहा है और कहाँ खत्म, पता ही नहीं चलता.
 
ऐसे समय में एक गाना बड़ी शिद्दत से याद आता है: “ संसार की हर शै का इतना ही ठिकाना है इस धुन्ध से आना है इक धुन्ध में जाना है...”

Friday, February 14, 2014

वेलेंटाइन डे- एक दिन प्यार के नाम

वेलेंटाइन डे -एक दिन प्यार के नाम



पूरी दुनिया ने एक दिन प्यार के नाम कर दिया और इसे मिल गया नाम संत वेलेंटाइन के नाम पर वेलेंटाइन डे
इसके साथ ही पूरी दुनिया में एक बड़ा बाज़ार भी पनप गया वेलेंटाइन गिफ्ट के लिए और माल बेचने वाले सौदागरों की चाँदी हो गई है.
भारत में भी वेलेंटाइन डे बड़े ही आन- बान -शान से मनाया जाता है, जब से प्रेम करने वालों की नई पौद ने पिछले - सालों में अवतरण किया है, तबसे प्यार और भी परवान चढ़ने लगा है. प्यार करने वाले अपने प्यार का इजहार फूलों से और उपहारों से करेंगे और प्यार के दुश्मन याने विश्व हिन्दू परिषद् और बजरंग दल वाले उसका विरोध करने सड़कों पर उतरेंगे.
खैर मामला जैसा भी हो कुछ लोगों के लिए ये टाइम पास शगल जरुर हो जायेगा
बायोलोजी ने प्यार को केवल एक केमिकल लोचा करार दे दिया हैयाने प्यार कोई भावना नहीं केवल शारीर में स्त्रावित होने वाले रसायन हैंऔर ये रसायन दिल में नहीं दिमाग से निकलते हैं , चलिए एक बात तो आज झूठी साबित हो गई की प्यार दिल का मामला है. पर हम भारतीय इसे नहीं मान सकते क्योंकि हमारे पास भावनाओं का अम्बार है
खैर जो भी हो इस दिन की बधाई हासिल करने का सबका हक़ बनता है , प्यार के लिए ये दिन अच्छा है पर सबसे प्यार करने का चाहे वे माता-पिता हों या कोई और.
प्रमियों को ये दिन मनाने से कोई नहीं रोक सकता पर वे मनाये इसे शालीनता के साथ.