Wednesday, October 4, 2017

रावण और गाँधी....

हम स्वयं अपने रावण हैं...गाँधी हैं...




30 सितम्बर को हमने रावण दहन किया और हर साल की तरह बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत का जश्न मना लिया. केवल एक दिन हम इस अच्छाई-बुराई के पाठ को दोहराकर फिर साल भर के लिए भूल जाते हैं.
रावण को बुराई का प्रतीक मानकर उसके प्रति अपनी नापसंदगी हम उसका दहन कर जाहिर करते हैं, पर...
एक बात शायद हम हमेशा भूल जाते हैं कि हर इंसान में गुण-दुर्गुण दोनों होते हैं और दोनों का संतुलन किसी में भी बराबर का कभी भी नहीं रहा. ऐसा होना संभव ही नहीं है क्योंकि ऐसा होना प्रकृतिक रूप से कभी भी संभव ही नहीं होता. अगर ऐसा होता तो इतिहास की इस भूल को हम हर साल याद न करते और रावण के रूप में बुराई का पर्याय और कोई हो ही नहीं सकता - ऐसा हर हिन्दू मानता है. यही कारण है की कोई भी अपने बेटे का नाम रावण रखने से कतराता है.
 ये तो हो गई पौराणिक पात्र की बात... अब हम अपने बारे में भी कुछ बात कर्रें. हमारे लिए दूसरे के अंदर के दोष देखना आसान होता है और जब वो हमें मुखर रूप से दिखाई देता है तो...हम उसे 'रावण' के संबोधन से नवाजना नहीं भूलते, पर... हम एक बात भूल जाते हैं कि हमारे अन्दर राम और रावण दोनों ही समाहित हैं. अपने अन्दर के रावण को हम अक्सर भूल जाते हैं- या सच ये है की हम जानते हैं पर हम उसका सामना करने से बचना चाहते हैं. और दुनिया से भी ये बात छूपा कर रखना चाहते हैं. इससे क्या होगा...? हमारे अन्दर का रावण मर तो नहीं जायेगा... उसे हम जितना खुद से छुपायेंगे वो उतना ही हमारे सामने आने की कोशिश करेगा. क्या अच्छा हो....! कि हम अपने अन्दर के इस रावण को मारने  की कोशिश करें.अब सवाल है कैसे...? तो इसका एक ही सरल सा  जवाब है कि हम दूसरों के दोषों की बजाय अपनी कमियों पे ध्यान दें तो हमें दूसरों के अंदर की अच्छाई को जानने का अवसर मिलेगा.


 अब हमारे अंदर के रावण के बाद हम ये भी जान लें कि हमारे भीतर के गाँधी भी मौजूद है. बेशक आज हम गाँधी जी को 2 अक्टूबर के दिन याद करते हैं. पर... क्या इतना काफी है...? ये सवाल आप खुद से जरुर पूछें. गांधीजी को आज हमने केवल स्वच्छता अभियान से जोड़कर रख दिया है पर जीवन जीने के उनके विचारों को तो हम कब का भूल चुके हैं. ये कड़वा सच है की अच्छी बातों और आदतों के बारे में हम बात तो कर सकते हैं पर जब उन्हें अपने जीवन में उतारने की बात आती है तो हम दायें-बाएं देखने लगते हैं. वास्तव में अच्छी बातों को जीवन में लागू करने का मतलब जीवन को नियमों और अनुशासन में बांधना. अब ये आज के समय में ये अच्छाई पर एक दिन कसीदे काढ़ लेते हैं बिल्कुल वैसे ही जैसे कितने भी पाप कर लो...एक बार गंगा स्नान कर आओ, सारे पाप गंगा के मत्थे मढ़कर हम संत हो जाते हैं.
 पर... हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमें स्वयं को उत्तर देना है तो हमें तय करना है कि हम अपने अन्दर के रावण को मारकर अपने अन्दर के गाँधी को जिन्दा रखना चाहते हैं. (वीणा सेठी)