Saturday, December 31, 2011

भ्रष्टाचार के विरुद्ध ....................

भ्रष्टाचार  के विरुद्ध एक लड़ाई में हम कहाँ हैं .............????






अन्ना हजारे और भ्रष्टाचार को जड़ के समूल नष्ट  कने का संकल्प  एक दूसरे का पर्याय बन चुके हैं और हर भारतीय ये आशा करने लगा है कि वे इस देश से भ्रष्टाचार और दूसरी बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेकेंगे और एक स्वच्छ भारत को लोगों के सामने पेश करेंगे  .......................पर क्या आपने या मैंने ये सोचा है कि अन्ना हजारे जी ने जिस बात पर लोगों को जगाया है, वह हमारे भीतर इस कदर अपनी जड़े  जमा  चुकी हैं कि उसके लिए हम में से हर एक को स्वयं के लिए  अन्ना  हजारे बनना  होगा. 




 क्या हर भारतीय ये दावा कर सकता है कि वह भ्रष्ट नहीं है..............???  ये सवाल हर भारतीय को खुद से करना चाहिए फिर उसे अपने सवाल का सही जवाब मिल जायेगा....................सच्चाई यही है कि हर इन्सान किसी न किसी रूप में और किसी न किसी हद तक थोड़ा या बहुत भ्रष्ट है इसलिए ये मानना कि अन्ना हजारे हमारे लिए इस देश से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेकेंगे ज्यादती होगी,  अगर वे हमारे लिए आन्दोलन कर रहे हैं तो बदले में वे भी तो किसी बात का हमसे आश्वासन चाहेंगे.....................ये बात सौ टका सच है कि दुनिया में कोई भी बात बिना लेन-देन के नहीं हो सकती........और यदि बदले में अन्ना जी हमसे ये चाहेंगे कि हम स्वयं को हर तरह के भ्रष्ट आचरण से रहित करें ................? तो क्या आप या  मै ये वाकई कर पायेंगे........................?????


सो ये मन के चलना चाहिए कि एक ७० साला वृद्ध बिना किसी स्वार्थ और अपना कोई हित साद्धे सवा करोड़ भारतीयों के लिए एक नए भारत का सपना लेकर आया है और अपने लोगों को हर तरह कि बुराइयों से मुक्त भारत देना चाहता है तो उसका साथ देना चाहिए न कि उसके इरादों को शक कि निगाहों से देखना चाहिए और उसके आन्दोलन को असफल करने कि कुत्सित चेष्टा करनी चाहिए ..........बेशक उनका रवैया और आन्दोलन का ढंग लोगों को तानाशाह सा लग सकता है ..पर आपको नहीं लगता कि वे काफी हद तक सही हैं .................एक देश और समाज जिसकी व्यवस्था हर स्तर पर साद-गल चुकी है और उसका  पूरी तरह से psotmortam    जरुरी हो गया है तो उनका ये तरीका ;बेहद कारगर साबित होगा..................
पर....पर...............pahle ham  स्वयं ko bhrashtachar se mukta to kar len..............





Thursday, September 8, 2011

ये जो चली है....ये कैसी हवा है..............?

दहशत में है जिंदगी.........

कल फिर से दिल्ली आतंकी धमाके से दहल गई.................... सड़क खून से तर हो गई और टी .वी चैनलों में सारा दिन ख़बरों का ताता लगा रहा , मरने वालों की संख्या  गिनी जा रही थी और जो बुरी तरह से जख्मी थे उनकी भी गिनती हो रही थी टी.वि चिनल वाले जिस तरह उन मार्मिक दृश्यों को बार बार दिखा रहे थे वे इन्सान के अंदर  की संवेदना की खत्म कर देने के लिए काफी है. बाद में नेता लोग जिस तरह से घायलों के प्रति अपनी संवेदना दिखने अस्पतालों  में गए वो इंसानियत को शर्मा देने के किये  काफी है. हमारे देश के नेता जिस मोती चमड़ी के बने है उससे शर्म भी शर्मिंदा जो जाये.
नेताओं को जब आम आदमी आतंक का शिकार होता है और मौत के मुह में चला जाता है तब उसे याद आता है की वह जाकर उस परिवार की सुध ले जब तक यही चोट इन नेताओं नहीं लगेगी वो आम आदमी दर्द को नहीं समझेगा.

Wednesday, August 10, 2011

भारतीय राजनीति...................


राजनीती में वंशवाद की अमरबेल...............



भारत में राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर आपको आजीविका के लिए  भटकना नहीं पड़ेगाये भी उस स्थिति में जबकी आप सक्रिय राजनीति में भाग ले रहे हों............. एक छोटे प्यादे याने छुटभैये नेता से लेकर विधायक, संसद और सरकार में मौजूद मंत्री-संत्री सबकी चांदी ही चांदी है यदि आप सरकार में मौजूद पार्टी के संत्री भी हैं तो जान लीजिये की पौ-बारहऔर यदि आप हरी हुई पार्टी में याने विपक्ष में हैं तो भी कोइओ बात नहीं आपके दिन फिर भी बुरे नहीं गुजरेंगे


भारत में राजनीतिक नेता होना बड़े कम की चीज है आप जिंदगी भर भूखे नहीं मरेंगेइसकी गारंटी कोई भी आंख बंद कर के दे सकता हैअगर आप किसी कद्दावर नेता के होते-सोते हैं तो मानना पड़ेगा कि आप सोने का चमच्चा मुंह में लेकर पैदा हुए हैंआजादी के ६३ वर्ष बाद भी भारत के राजनीतिक क्षितिज पर वंशवाद कि बेल अमरबेल कि तरह पनप रही है और भारतीय लोकतंत्र रूपी बटवृक्ष कि जीवन रेखा को निचोड़े दे रही हैभारतीय राजनीति में ये महत्वपूर्ण है कि आप किसके बेटे है या दामाद या बेटी, भतीजे हैंकेवल भारतीय राजनीति में महात्मा गाँधी अपवाद स्वरुप हैं जिन्होंने वंशवाद को प्रश्रय नही दिया अन्य नेताओं ने तो वंशवाद को जिस तरह से पल्लवित और पुष्पित किया है वह सबकी निगाहों के सामने हैजवाहर लाल नेहरु ने तो कोंग्रेसकि कमान ऐसी पकड़ी कि आज देश कि बागडोर उनके प्रपौत्रों के हाथों में पिछले ६३ सालों से है केवल बीच के १५-१८ वर्षों को छोड़करअब तो ऐसा लगता है कि भारतीय लोकतंत्र वेहरू-गाँधी परिवार कि व्यक्तिगत सम्पति कि तरह रह गया है गोया सवा अरब कि जनसँख्या वाले देश में आज तक एक भी योग्य प्रधानमंत्री पैदा नहीं हो सका

इस देश में नेता का पुत्र या पुत्री या फिर रिश्तेदार होना बड़े गर्व कि बात है.............. अब तो यही लगता है कि कांश हम भी...........................??????

Monday, July 11, 2011

देशभक्ति के मायने



देशभक्ति के मायने.........????


हर व्यक्ति तथा समाज की अपनी एक विशिष्ट पहचान होती है और यही उसका चरित्र भी होता है।' इसी तरह हर देश का भी अपना एक चरित्र होता है जिसे राष्ट्रीय चरित्र कहते है' और ये चरित्र ही उस देश को दुनिया में अपनी पहचान देता है। ये राष्ट्रीय चरित्र की आत्मा उस देश के हर नागरिक के पास होती है। यही राष्ट्रीय चरित्र व्यक्तिगत स्तर पर देशप्रेम के रूप में प्रकट होता है.
तो अब हम बात करें अपने देश की और स्वयं से ही सवाल करें कि हमारा राष्ट्रीय चरित्र क्या है??????................
हमारे यहाँ राष्ट्रीय चरित्र भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी,बेईमानी और नानाप्रकारों से प्रकट होता है। जहाँ ईमानदारी राष्ट्रीय चरित्र के कुछ एक घटकों में से एक है वह हमरे देश में अब अपवाद स्वरुप यदाकदा देखने को मिल जाती है, वफ़ादारी एक अन्य घटक है जो देश के प्रति तो नहीं दिखती अलबत्ता सत्ता पर काबिज राजनितिक पार्टी या सत्ता के बाहर खड़ी विपक्षी पार्टी क प्रति पूरी निष्ठां के साथ निभाई जाती है, और यही हमारे यहाँ राष्ट्रीय चरित्र याने देशभक्ति के रूप स्थापित है, तो यही देशभक्ति या देशप्रेम है और हर भारतीय को ये बात अच्छी तरह समझ लना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति सरकार कि गलत नीति के विरुद्ध आवाज ऊठाता तो उसे तत्काल ही देशद्रोही कि श्रेणी मन दल दिया जाता है- हर आम भारतीय ये बात दिमाग में बिठा ले....................... इसलिए आगे से ये जान ले कि सत्ता पे आरूढ़ कोई भी राजनितिक पार्टी चाहे कितने भी धोटाले करे आम आदमी कि मजाल होनी ही नहीं चाहिए कि वह इसके विरुद्ध कुछ कहने का साहस भी करे। और सरकार कितने भी सुकर्म करे ,चाहे देश को कितने भी खतरे में डाले और कितने भी देशद्रोह के कार्य करे उस पर कोई भी ऊँगली नहीं ऊठा सकता ये हक़ केवल विपक्ष कि झोली मेंडाला गया है जो केवल कुछ समय सियारों वाली 'हुआ -हुआ ' करके अपने कर्तव्यों कि इतिश्री कर लेती है।
तो अगली बार चाहे कितना भी भ्रष्टाचार, घोटाला उजागर हो इतना जान लीजिये कि आपको गांधीजी के तीन बंदरों कि तरह सब कुछ देखना, सुनना है पर कहना कुछ नहीं है................................
अब कहने को कुछ नहीं है इसलिए बिदा............................



Monday, July 4, 2011

भारत है कहाँ????

आइये भारत को खोजें--------------------??????


 

भारत का नक्शा एक नजर से  देखा  जाये  तो  उसे  देखते  ही  एक  अपनत्व  की  भावना  मन  में  आ  जाती  है . मन
तरंगित  हो  उठता  है . पर .......... जैसे  ही  नक़्शे  पर  निगाह  जाती  है  तो  नजर  ' भारत  ' शब्द  को खोजती   रह  जाती  है , वाकई  आज  भारत  शब्द  खोजने  पर  भी  नहीं  मिलता . आज  भारत  के  तीन  शब्द  तो  नहीं  मिलते  पर  पूरा  नक्षा  अलग -अलग  खानों  में  बंटा मिलता  है  और  इन  विभक्त  खानों  में  महाराष्ट्र  ( राष्ट्र के अन्दर महा राष्ट्र.........???), गुजरात, दिल्ली , पंजाब, तमिलनाडु.................. बता नजर आ रहा है। पर नहीं नजर आ रहा तो भारत।
आज अगर एक आम आदमी से सवाल करें की वो कौन है या फिर उसका परिचय पूछा जाये तो ये जूमला शायद ही सुने देगा की , मै भारतीय हूँ। आप केवल सुन पाएंगे - हम महाराष्ट्रियन हैं या मै गुजरती हूँ या मद्रासी हूँ....., मै भारतीय हूँ......ये अब सुनना दुर्लभ है।
सच तो ये है की आज आप खोजने जायेंगे तो पाएंगे की 'भारत' कही खो चूका है। आप इंडियन तो हो सकते हैं पर भारतीय नहीं। स्वयं को इंडियन आप भारत के बहार भी बड़े आराम से बोल सकते हैं। एक समय था जब दूरदर्शन पर एक नारा बुलंद था की कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है....................... जो आज गायब हो चूका है।
आज तो हालत ये है की क्षेत्रवाद इतना हावी हो चूका है की आम भारतीय , भारतीय कहलाने में गर्व नहीं महसूस करता बल्कि महाराष्ट्रियन या गुजरती कहलाने में अधिक गर्व महसूस करता है। हम सब भारतीय हैं ये बात अब साल में केवल २ या ३ दिनों में ही याद करने पर ही याद  आती है अगर ये तिथियाँ नहीं होती तो शायद ये भी याद नहीं आ पाता की ,
" भारत है कहाँ........???"




Friday, July 1, 2011

बलात्कार और कितने ......? और कब तक...........?

बलात्कार से दहला उत्तरप्रदेश.....................??


विगत 2-3 दिनों से उत्तरप्रदेश का नाम न्यूज़ चैनलों  में छाया रहा किसी अच्छी खबर के लिए नहीं वरन बुरी खबर के लिए. ये खबर नारी की अस्मिता से जुड़ी थी.नारी की अस्मिता एक बार नहीं बल्कि कई बार तार-तार हुई. मुखयतः कस्बों और गावों में. जिनकी अस्मिता को तार-तार किया गया उनमें से अधिकतर नाबालिग  कन्याएं थीं, तथा कुछ की अस्मिता से खेलने के बाद उनकी हत्या कर दी गई. ये सब उस प्रदेश में हुआ जिसकी मुख्य मंत्री एक महिला है. 
नारी की अस्मिता को तार-तार कर देने के लिए एक बहुत ही प्रचलित शब्द  है  "बलात्कार". इस शब्द का उपयोग न्यूज़ चैनेल इस हद तक कर चुकी हैं की ये शब्द सबकी जुबान पर चढ़ चुका है. ये शब्द अब किसी परिचय का मोहताज नहीं रह गया है. शर्मनाक एवं दुखदायी बात ये है की न्यूज़ चैनलों में जब ऐसी ख़बरों का वचन होता है तो समाचार पढने वाले उसे एक सनसनी की तरह परोसते हैं और घर बैठे जो समाचार सुन रहे होते हैं वे खाना खाते और चाय के प्याले के साथ वह घटनाक्रम भी राजाना समाचारों की तरह ही हो जाता है.
बलात्कार याने नारी की अस्मिता को तार-तार करने वाले समाचार सुबह से शाम तक इतनी बार प्रसारित हो चुका होता है की उसके प्रति आम जानकी संवेदना भी ख़त्म जो जाती है.

वास्तव में ये सच है की न्यूज़ चैनलों द्वारा प्रसारित होने वाले समाचार इन चैनलों के लिए केवल अपनी T  R  P
बढ़ाने का साधन मात्र हैं और वे समाचार को जितना सनसनीखेज बन कर पेश कर सकते हैं करते हैं और इसके लिए वे विषय की संवेदनशीलता और उसकी सामजिकता का भी ध्यान नहीं रखते. समाचारों  का जिस तरह से आजकल प्रसारण हो रहा है उससे उनके प्रति जो आम जन की संवेदनाशीलता  ख़त्म होती जा रही है. आज यदि हम अपनी संवेदना को टटोलें तो पाएंगे की बलात्कार जैसे मुद्दे और उनसे जुड़े समाचार अब हमारे  लिए केवल  खबर बन कर रह गए हैं.
नारी की अस्मिता एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है क्योंकि भारत जैसे देश में आज भी नारी की अस्मिता की परीक्षा ली जाती है और  उसके चरित्र की कुंजी भी उसकी अस्मिता से ऐसे ही जुड़ी है जैसे जीवन से सांस की डोर. ऐसे में जब किसी नारी या नाबालिग कन्या की अस्मिता को कोई वहशी ( अब तो कोई भी कभी भी वहशी बन रहा है) तार-तार करता है तो वो अपना जीवन फिर एक बार खो चुकी होती है. क्योंकि भारत जैसे देश में नारी के साथ यदि बलात्कार होता है तो उसमें भी उसी का दोष माना जाता है.

उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों जिस तरह से नारी की अस्मिता के परखच्चे किये गए वो शर्मनाक ही नहीं अमानवीय है और ये न्यूज़ चैनलों के लिए केवल खबर ही थी पर उसका कहीं विरोध नही दिखाई दिया. नारी को देवी मानाने वाले इस देश में नारी देवी बनकर पूजी जा सकती है या घर के सामान की तरह उपयोग में आने वाली वस्तु हो सकती है .क्योंकि वाकई यदि वह इन्सान की तरह इस समाज  का हिस्सा होती तो उसकी इज्जत से इस तरह खिलवाड़ नहीं होता. बलात्कार तो अब एक ऐसी बात होती जा रही है जिसके लिए लोग अब संवेदना भी प्रकट करने की आवश्यकता नहीं समझते. उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्राणी स्वयं एक महिला है चाहें तो वे इस घटना की शिकार महिलाओं और नाबालिग कन्याओं को न्याय दिलवा सकती हैं............क्या कहती हैं मंत्री साहिबा..........................???
जिस नारी या कन्या की अस्मिता एक बार तार-तार हो जीती है उसकी जिदगी आजाब बन जाती है वो रोज-रोज मरकर जीती है, दुनिया की निगाहें रोज रोज उसके साथ हुए हादसे की उसको याद दिलाती है.और लोग अपनी निगाहों से उसका रोज-रोज सैकड़ों बार बलात्कार करते हैं. ये भारत जैसे देश में ही हो सकता है हम बेहद संवेदनशील हैं और इसका ढोल भी पिटते हैं पर जब नारी की अस्मिता की बात आती हैं तो हमारी संवेदनशीलता कहाँ गायब हो जाती है पता नहीं.............??
अब प्रश्न ये है की इस तरह की घटनाओं को बढ़ने से रोका जाये और जो अब तक हो चुकी हैं उसके लिए राष्ट्रीय या प्रादेशिक महिला आयोग क्या कर रह है...........? और हमारा क्या कर्तव्य होना चाहिए ये हमें सीखना नहीं पड़ेगा.




Saturday, June 25, 2011

देश की ये भावी संतान.........


 शराब के चस्के की लपेट में स्कूली लड़कियां 
दो दिन पहले India T V न्यूज़ चैनल पर एक समाचार   ने चौका दिया . इंदौर के एक प्रतिष्टित स्कूल की 12 क्लास की 3 स्टुडेंट्स  क्लास में शराब पीते हुए पकड़ी गई .
वाकया जब सामने आया जब एक लड़की तबियत अचानक खराब हो गई और टीचर ने उसकी तबियत के बारे में जब पूछा तो पता  की ३ लड़कियों ने क्लास में वोदका पानी की बोतल में भर के क्लास में लेकर आई और हाफ टाइम में पानी में मिलकर पी रही थीं. एक लड़की को शराब नहीं पची और उसने उलटी कर दी जिसके कारण शराब की गंध पूरे क्लास  में फ़ैल गई और उनकी चोरी पकड़ी गई.
कुछ तथ्य ध्यान देने योग्य हैं:-
* जो लड़की शराब लाई उसके पिता की शराब की दुकान है. वो वोदका की बोटल लेकर क्लास में आई थी.
* शराब पानी पीने वाली बोतल में लेकर आई थी.
* शराब पानी में मिला कर पी जा रही थी.
* यदि एक लड़की  की तबियत ख़राब नहीं होती तो पता ही नहीं चलना था की ये गोरखधंधा कब से चल रहा था और ये जानकारी कभी भी दुनिया के सामने नहीं आ पाती कि स्कूलों में लड़के तो अभी तक शराब पीते अब लड़कियां भी उसी राह पर चल पड़ी हैं.
* स्कूल कि मैनेजमेंट कमेटी ने उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू कर दी है. और तीनों छात्राओं को निष्कासित कर दिया है.

ये तो हुई भारत के एक स्कूल कि कहानी  और स्कूलों कि भी कहानी भी यही होगी........?? ये यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर खोजना अभी बाकि है.

आजकल छोटे स्कूली बच्चों में नशे कि लत्त इस हद तक है कि जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

#बच्चे thinner , nail polish remover , balm जैसे आसानी से उपलब्ध नशे के तरीके आजमा रहे हैं. जिन्हें सूंघ कर  नशे का आनंद ले रहे हैं .
#ये  आसानी से मिलने वाले साधन हैं और कम पैसे में मिल जाते हैं.
# बच्चों में ये आदत एक दूसरे के साथ मित्रता बढ़ने का साधन बनती जा रही हैं.

बच्चों में अगर इस आदत ने पावँ  पसर लिए हैं तो भी चौकन्ना होने कि जरुरत है. यदि आपका बच्चा सुस्त नजर आता है, बात-बात में खीज जाता हो, आपकी बात पर गुस्सा करता है या फिर पैर पटकता है , कमरे में स्वयं को बंद कर ले, अकेले रहना पसंद करे तो समझ ले उसके साथ कुछ भी ठीक नहीं है. उससे नरमी से पेश आयें और ये जानने कि कोशिश करें कि कहीं वो किसी नशे का आई तो नहीं बनता जा रहा.

ये एक ऐसे समाज कि तस्वीर पेश कर रहा जहाँ ऐसा लग रहा है मानों भारतीय समाज बहुत  तेजी से टूटने कि कगार पर आ चुका है.




Wednesday, June 22, 2011

हम चूहे-बिल्ली है ...................या इन्सान........??

कब तक दुनिया की नजरों में हम कीड़े-मकोड़े रहंगे................?

कल आज-तक न्यूज़ चैनेल में एक समाचार ने रोंगटे खड़े कर दिए, कोयम्बतूर की गरीब महिलाओं पर ब्रेस्ट-कैंसर की दवाई का clinical trial हुआ , जिसमें बहुत सारी महिलाओं की तबियत बिगड़ गई. हर महिला को पहले 10,000 रुपये दिए गए किन्तु इस बात से अन्जान रखा गया कि उन  पर किसी दावा का परीक्षण किया जा रहा है.
* जब भी किसी दावा का ट्रायल किया जाता है  तो विषय में जानकारी देना आवश्यक होता है और प्रिस्खन के दौरान पूरा ध्यान रखा जाता है.पर इन महिलाओं को इससे अन्जान रखा गया था.

* 2005 तक तक भारत के लोगों को गिनी-पिग नहीं बनाया जा सकता था किन्तु उसके बाद नियम ढीले कर दिए गए और उसके बाद तो दुनिया कि लगबग 5 -10 % दवाओं का ट्रायल भारत में ही होने लगा है. 
* जब भी दवाओं का ट्रायल होता है तो अस्पताल कि ethics committee से अनुमति लेने के बाद ही किया जा सकता है और भारत में आज तक कोई भी काम बिना नियमों कि धज्जियाँ उड़ाए किया ही नहीं जा सकता है. यहाँ पर भी नियमों  को तक पर रख दिया गया.

* भोपाल और इंदौर जैसे नगरों से इसी तरह कि ख़बरें छन-छन के आती रहती है पर क्या हुआ..? कुछ नहीं.......! 
* भारत में इन दवाओं का ट्रायल जानवरों के बाद इंसानों पर करने के लिए के लिए बेहद आसान है क्योंकि यहाँ कि सरकार कि निगाह में इन्सान कि जान कि कीमत कुछ भी नहीं है.

* जिन दवाओं का ट्रायल भारत में होता है उसका खर्चा पूरी दुनिया कि अपेक्षा यहाँ  60 % सस्ता पड़ता है और सरकारी नियमों कि अनदेखी तो जग जाहिर है. अमरीका जैसे देश ने तो दवाओं के ट्रायल को अपने देश में लगभग बंद कर दिया है क्योंकि वो अपने देशवासियों कि जन जोखिम में नहीं डालना चाहता क्या भारत में आप इस बात कि कल्पना भी कर सकते हैं..??

* जिन दवाओं का ट्रायल भारत में होता है और जिनके लिए भारतियों कि जन जोखिम में डाली जा रही है वे दवाएं हमारे  लिए अनुपलब्ध रहती हैं केवल अमरीका तथा यूरोप जैसे देशों के लिए उपलब्ध रहती हैं.

ये भारत है जहाँ कुछ भी कभी भी किया जा सकता है. है हो भारत......!!









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