Sunday, September 1, 2013

भारतीय सच:.....ek ankaha sandarbh



सच का भारतीय सच:
 भारतीय मानसिकता दोहरेपन की शिकार है क्योंकि यहाँ जिन बातों का व्यवहारिक उपयोग नहीं करना होता उन्ही बातों को उपदेश या नीति वाक्यों में ढाल दिया जाता है. पूरी सामाजिक व्यवस्था यह जानती है की झूठ बोलना पाप है. किन्तु झूठ धड़ल्ले से बोला जाता है और झूठ इतना अधिक व्यवहार में लाया जाता है कि वह सामाजिक अनिवार्यता बन गया है. ऐसे वातावरण में सत्य के लिए स्थान शेष नहीं रहता. भारत जिन उच्चा-आदर्श मूल्यों की बात करता है यदि उन्हें स्थापित किया जाये तथा व्यवहार में लाया जाये तो एक ऐसे समाज की तस्वीर बनती है जिसमें अच्छाई एवं आदर्शों के अलावा कुछ भी न होगा. पर तस्वीर इसके ठीक विपरीत है. व्यवहारिकता में यहाँ  इन सब बातों को  कोई  भी अपनाने को तैयार नहीं है यही कारण है कि सच झूठ एवं भ्रम के गुरुत्व के नीचे दबा पड़ा रहता है और काफी परिश्रम के बाद ही निकालने पर ही बाहर आ पाता है.भारतीय समाज में व्याप्त इसी दोहरेपन के कारण आम आदमी यह जानते हुए भी कि सच बोलना चाहिए वह सच से दूर तक वास्ता नहीं रखना चाहता. जब सच के प्रति यह अपच की भावना है तो सत्य को स्वीकार करने का प्रश्न ही नहीं उठता. इसके अलावा ये सवाल भी उठता है कि सच इतना दुरूह क्यों है? जबकि वह सहज व दो टूक हुआ करता है. सच कि इस सहजता को पचा पाना भारतीय मानसिकता के लिए सदा ही मुश्किल रहा है.जिन उच्च आदर्शों या नैतिकता कि बात ढ़ोल बजा-बजा कर करते हैं क्यों उसको आम व्यवहारिकता में लेन आदमी से परहेज करता आया है?

 


Monday, April 22, 2013

बात एक अनकही सी

 सुनो छोटी सी  गुड़िया की ये दुःखभरी कहानी ...




"गुडिया" के साथ जो कुछ इंसानियत को शर्मसार करनेवाला हुआ वो यहीं तक नहीं थमा, पुलिस भी अपनी  दरिंदगी दिखाने से बाज  नहीं  और उसने F I R दर्ज करने की बजाये परिवार वालों पर ये कहकर दवाब डाला कि 2000रू  ले ले और मामला रफादफा करे.  लगता है दिल्ली पुलिस में   मानवता, संवेदनशीलता ख़त्म हो गई है. बात ज़ब मीडिया में आई तब जाकर पुलिस की आँख खुली और आननफानन  में रिपोर्ट  दर्ज की गई। और  पूरे देश में अब जो आक्रोश की लहर फैली है वह एक जनान्दोलन की शक्ल अख्तियार करती जा रही है जो अब जरुरी है, नहीं तो लगेगा की खून का रंग सफ़ेद हो चुका है.पर ...  लगता है क्या ऐसा करने से हमारे अन्दर का हैवान खत्म हो जायेगा ...???   क्या आपको नहीं लगता अब बहुत हो चुका ...?  अब तो  केवल एक बन्दुक और गोली की दरकार  है और जो भी हैवानियत दिखा रहा है उसके सीने पर दाग दो, नहीं तो उसके  हाथ पाँव काटकर फेक  दो ताकि  सारी उम्र  अपने गुनाह को याद करके जिए जिए और रोज मर मर के जिये। क्या आप ...ऐसा नहीं चाहते … ???  मै तो ऐसा ही चाहती  हूँ ...   

  अभी लगता है और भी कुछ और भी बाकि था, कुछ और मासूमों की मासूमियत कुचली जानी  बाकि थी  जिसका जिक्र करना फिर से इंसानियत को शर्मिंदा  करना है ... पर सवाल ये है कि आखिर ये सब कब थमेगा ...??? हमारे हुक्मरानों के सर पर जूं नहीं रेगने वाली और उन्हें तो आम आदमी की तरह सड़क पर नहीं चलना पड़ता है और न ही वे इन मासूम का दर्द समझ सकते, जब तक खुद के घर में आग नहीं लगेगी.
देश में पिछले २-3 दिनों से कुछ और मासूम गुड़ियाँ  हैवानियत का शिकार हुई हैं और राजनितिक दल  और केंद्र में बैठी सरकार के लोग केवल अपनी प्रतिक्रियाएँ देने में ही व्यस्त हैं।

जब तक  अमानवीय, पाशविक,हैवानियत से इतर कुछ  होता नहीं इस देश के लोंगों की नींद नहीं खुलती, और हम भी क्या करें   हजार पिछले २ हजार सालों से हमें जुल्म सहने की इतनी इतनी आदत पड़ चुकी है कि हम  चुपचाप रहना अधिक पसंद करते  हैं और अब तो हमारी संवेदना भी इतनी कुंद  चुकी है कि  किसी घटना का हम पर अब  कोई  प्रभाव भूले से भी नहीं पड़ता, वास्तव में हम ऐसे समाज में जी रहे  हैं जो मानसिक रूप   से बीमार  है। और यही कारण  है कि पिछले 2 हजार सालों से भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा है और अब तो ये जकड़न आदत सी हो गई है, जिसके चलते हम भूल गए हैं कि हम एक जिन्दा समाज में जीते हैं और हम इंसान हैं। भारत जैसा देश जहाँ नारी को "देवी " के रूप में पूजा जाता हैं उसी देश में नन्ही बेटियों को पुरुष अपनी लम्पटता के चलते अपनी हवस का शिकार बना रहा है, ये लानत की बात है पर कोई समझे तो सही इस बात को।

अब यदि वाकई ये देश  है तो  अब इसे सोना नहीं चहिये। अभी जरुरत है ऐसे इंसानियत से गिरे पाशविक हादसों को रोकने की ... पर इसके लिए जो सबसे जरुरी है वो है "नारी के प्रति अपनी आदिम सोच को बदलने की क्योंकि वह कोई वस्तु  नहीं इन्सान है और  जिसे आजादी   से जीने का हक़ है . ये हर नारी क्या हर मासूम गुडिया को तय करने दें कि वो उड़ना चाहती है तो उसके लिए खुला आसमान हमने तैयार करके देना है जहाँ कोई चिल या गिद्द उसकी उड़ान न रोक सके उसके जिस्म पर  अपने पंजे न गड़ा सके और न ही उसकी आत्मा लहूलुहान कर सके. 

आइये अपने मासूमों को एक ऐसा स्वस्थ्य सोच वाला भारत दें .  








Friday, March 8, 2013

महिला दिवस --- 8 march

नारी.."वीरा है..पुरंधी है, शक्ति है...."




वर्तमान में नारी जिसे अबल समझ जाता है. प्राचीनकाल में शक्तिरूपा थी, कलि, चामुंडा, दुर्गा जसी देवी नारियों के लिए वेदों में स्तुति की गई है-
" या देवी सर्वभूतेषु कलिरुपेण संस्थिता .
नमस्तस्यै नमस्तस्यै,नमस्तस्यै  नमो नमः ..
 या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै,नमस्तस्यै  नमो नमः .."

वैदिक काल में  पुत्र को 'वीर' तथा पुत्री को 'वीरा' कहा जाता था. ये शब्द अपनी संतानों को पराक्रमी और साहसी बनाने के संकेत देते हैं. प्राचीन भारत में शिक्षा का पाठ्यक्रम ही इस प्रकार का  होता था कि लड़का वीर और कन्या वीर बनती थीं. अन्यथा नारी शक्तिरूपा किस प्रकार बन सकती थी.?  इस प्रकार कि शिक्षा के आभाव में बच्चे स्वतः ही पराक्रमी नहीं बन सकते...
संस्कृत में नारी के लिए "पुरन्ध्री", पुरन्धि, " इन शब्दों का प्रयोग हुआ है. इस शब्द कि व्युत्पति " पुरम धारयति " 'पुरम' का अर्थ होता है "नगर" , नगर को धारण करने वाली या नगर कि रक्षा करने वाली. इस प्रकार होता था. इस शब्द का मौलिक अर्थ है "नगर को धरना करने वाली", पर आज इसका अर्थ " घर को धारण करने वाली" के अर्थ में लिया जाता है.पुर अथवा पुरी शब्द महानग्रियों का वाचक है. ऐसी महानगरियों की रक्षा प्राचीनकाल में स्त्रियाँ ही करती थीं. नारियों द्वारा किये जाने  वाले  इस  कार्य से यह प्रतीत होता है की प्राचीनकाल में देश या राज्य की रक्षा का कार्य स्त्रियाँ करती रही होंगी. इस कल में यह पद्धति थी क़ी स्त्रियों को शस्त्रास्त विद्या सिखाकर समय पड़ने पर सनापति के पद पर नियुक्त किया जाता था, तब स्त्रियाँ आवाहन भी करती थीं की- " जो मुझे हराएगा मेरा पति होगा". महिषासुर ने भवानी को अपनी पत्नी बनाने के लिए सन्देश भेजा, तो उसने महिषासुर से कहा की जो  मुझे युद्ध में पराजित करेगा वही मेरा पति होगा". यह सन्देश कितना वीरतापूर्ण है. इसी विरकुमारी भवानी ने राक्षसों का भंयकर संहार किया. इस तरह का वीरतापूर्ण उत्तर देने वाली नारियां अबला हो ही नहीं सकती.
जन्म से "वीरा" तरुनावास्था में "पुरम-धी" विवाहिता होने पर "शक्ति" इस प्रकार उनके नाम सार्थक होते थे.जब नेतृत्व करने में समर्थ होती थीं तब उनका नाम "नारी" होता था.इन नामों के अर्थ पर दृष्टि डाली जाये तो यह प्रमाणित होता है की तत्कालीन नारियां अबला नहीं थीं, वे सचमुच सबला और सकती थीं. जीवित राष्ट्र में नारी का इसी प्रकार शक्ति रूपा होना आवश्यक है.

Wednesday, January 9, 2013

नापाकी पाक की

 
नापाकी  पाक की एक और नापाक बर्बर हरकत .........

आज प्रातः के समाचार पत्रों की मुख्य हेड लाइन काफी चौकाने वाली और दर्दनाक थी :- और समाचार कुछ इस तरह से था।

" पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सीमा के भीतर घुसकर गश्त लगा रहे भारतीय सेना के जवानों पर हमला कर कथित रूप से दो सैनिकों की गला काटकर नृशंस हत्या कर दी. पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा से सटकर हुये इस हमले में पाकिस्तानी सैनिक करीब 100 मीटर तक भारतीय सीमा में घुस आये और गश्ती दल पर हमला कर दिया. उन्होंने दो लांस नायकों हेमराज और सुधाकर सिंह की हत्या करने के अलावा दो अन्य सैनिकों को घायल कर दिया. सूत्रों ने बताया कि इस क्रूर हमले के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने कथित रूप से दो सैनिकों के सिर काट दिये और उनमें से एक का सिर अपने साथ लेकर चले गये."

नापाकी  पाक



पाकिस्तान की एक और नापाक और इंसानियत को शर्मिंदा कर देने वाली हरकत के लिए पकिस्तान शर्मिंदा हुआ हो या न हुआ हो  ... पर हम जानते हैं कि इंसानियत जरुर शर्मिंदा हुई है  ... और बड़े भाईजी (भारत के हुक्मरान )जैसा की पहले भी करते आयें हैं  ... बेशक हमारे दो जवानों की जान उनके लिए कीमती नहीं -छोटे भाई का प्यार ज्यादा कीमती है ... इसलिए हमारे "एस  ..." वाले बेचारे प्रधानमंत्री जी उन्हें माफ़ कर देने को उतावले हो रहे होंगे ... बेशक दिखाने  की लिए ही सही वे हलकी सी फटकार लगा कर अपने कर्तव्य की पूर्ति जरुर करना चाहेंगे। अब भाई क्या किया जाये ...?? वे भी तो बेचारे लाचार हैं अपने सहारे होते तो न जाने कभी का पाक को उसकी नापाक हरकतों के लिए उसकी पीठ ठोंक चुके होते  ... अंकल सैम की भी सुननी ही  पड़ेगी। अगर  उनसे पूछे बिना ही छोटे भाई को डांट दिया तो कहीं .... अंकल सैम नाराज होकर कान ही न खिंच दें ...??
अंकल सैम क्लास टीचर हैं और ये बात नापाक पकिस्तान याने छोटा भाई अक्सर भूल ही जाता है और वडे भ्राजी(भारत) कभी भी नहीं भूलते,  और अंकल सैम (अमेरिका) हमेशा छुटकू की गलती पर भी बड़के  भैया की ही कान खिंचाई करते हैं। अब मजाक मजाक में पाकि भाई ने हमारे दो जवानों को  बेदर्दी से जान से मार दिया तो भारती भाई ने जैसा की पाकि  भाई को पता था की सैम अंकल की डांट के डर  से भारती भाई याने बड़के भैया कुछ कह तो पाएंगे नहीं, उल्टा दूर से आँख दिखाकर ही  ये सोचकर संतोष कर लेंगे कि जाने दो ...!! छोटा भाई है।

वाकई इस पूरे घटनाक्रम में विश्व के सामने और कोई शर्मिंदा हुआ हो या न हुआ हो पर देश अवश्य शर्मिंदा हुआ है और हमारे सम्मान पर जैसा कि पकिस्तान अतीत में भी चोट पहुंचाता  आया है, एक बार उसने फिर से हमारी अस्मिता और अस्तित्व पर कुठाराघात किया है और हमारे प्रधानमंत्री जी किसी भी तरह के कठोर कदम उठाने से हिचकिचा रहे से दीखते हैं। उनके चहरे से टपकने वाली बेचारगी उनकी हालत का बयां खुद ही कर देती है। हमारे देश की लचर राजनीति और नेता जो कि  सियारों की तरह हुआ ....हुआ से अधिक कुछ नहीं कर सकते, उनसे देश सम्मान की उम्मीद करना तो बेवकूफी है और उस पर तुर्रा ये कि हमारी विदेश नीति ...?? माशाल्लाह है ...! अब इसे कोढ़ में खाज ही कहना होगा  ... आप क्या कहना चाहेंगे ...??

हमारी हालत उस गधे जैसी है जिसे हर कोई (हर देश) आते जाते ठोंक जाता है और जैसा गधा बेचारा कुछ नहीं कर पाता  ... हम भी बस खींसे निपोर कर रह जाते हैं, फिर ऐसे में अपनी झूठी इज्जत का क्या रोना रोना ...??
पर ये तो बहुत खराब बात है पकिस्तान जैसा नापाक मुल्क अपने नापाक इरादों को जब चाहे अंजाम देता रहता है और हम सिर्फ हेड मास्टर (अमेरिका)के आगे दरियाफ्त करते रह जाते हैं और हेड मास्टर अपने खिलाफ की गई पाकि की किसी भी नापाक हरकत की सजा ड्रोन के हमले के साथ देता है।

बात तो  पुरानी है पर फिर भी जब भी याद आये, घाव हरे कर ही जाती है- हमारे अंदर इतना भी नैतिक साहस नहीं बचा की दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र और दुनिया का सबसे दूसरा  बड़ा मुल्क अपने सम्मान के बचाव में कुछ कर सके और अदना से मुल्क की हरकते हमारी खिल्ली उड़ाती नजर आती है। आज लगता है देश को वर्तमान प्रधानमंत्री के स्थान पर किसी लौह पुरुष की आवश्कता है जो अपने देश के सम्मान की रक्षा कर सके। न केवल रक्षा कर सके बल्कि हर बात का जवाब नैतिक साहस से दे सके। क्या आपको नहीं लगता कि सरदार वल्लभ भाई पटेल और सुभाष चन्द्र बोस को एक बार फिर से लौट आना चाहिए ...??? पर इस बात से मेरा तात्पर्य ये है की हममे से हरेक को बोस या पटेल बन जाना चाहिए फिर हमारे ये सियारी नेता हुआ हुआ करना छोड़कर देश के बारे में सोच पाएंगे।
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Sunday, January 6, 2013

एक परछाई से डर गया शासन....

एक परछाई से डर गया शासन....


दामिनी का जिस तरह से पाशविक दमन किया गया था उससे केवल उसका ही नहीं हर भारतीय नारी कि अस्मिता रेशा-रेशा होकर बिखर गई. आज दामिनी हमारे बीच नहीं है पर उसकी शहादत अपने पीछे ऐसे अनबुझे और अनसुलझे सवाल छोड़ गई है जिनके जवाब ढूंढने में हम सदियाँ न लगा दें या फिर जिस तरह से वो हमें जगा कर गई है वह हमारे लिए उनींदी आँखों का जागना न साबित हो ...उसके बलिदान से जो आंदोलन कि लहर देश में दौडी है कहीं वो ठंडी न पड़ जाए...?? अगर हम अब जाग गए हैं तो हमें जागते रहना चाहिए और सोने कि बात तो भूल ही जाएँ तो अच्छा है.

उसकी शहादत से तो सत्ता में बैठी सरकार जिस कदर डरी बैठी है वह उनकी इस शर्मनाक हरकत से ही पता चल जाता है, जब उसके सब अंगों ने काम करना बंद कर दिया था तब भी दिखावे के लिए सत्ता में बैठे सत्ताधीशों ने विशेष विमान द्वारा सिंगापुर इलाज के लिए भेज दिया (ऐसा मेनका गाँधी का दावा है) और वहाँ से उसकी मृतक देह को रात्रि के ३.३० बजे भारत लाया गया और उसकी आगवानी के लिए हमारे बेचारे प्रधानमंत्री को मैडम सोनिया गाँधी के साथ इतनी कड़कड़ाती ठण्ड में एअरपोर्ट जाना पड़ा... इस हाई प्रोफाइल व्यवहार के लिए इतना ही कहा जा सकता है कि उस लड़की कि परछाई से हमारी सरकार कितनी घबराई हुई है मानो सत्ता उसके हाथों से निकल ही गई है... और उसके अंतिम संस्कार कि रस्म भी आनन्-फानन में निबटा दी गई. जब पूरा भारत सो रहा था तब हमारी सरकार जो सालों से सो रही थी अपनी सत्ता बचने के चक्कर में आधी रात को ठीक उसी तरह से जाग गई थी जैसे १९४७ में भारत आधी रात को स्वतंत्रता हासिल करने के लिए जागा था. कितनी सक्रियता दिखाई हमारी सरकार ने और कोई मामला होता तो अब तक तो उसकी नींद कभी न खुलती. सच्च्चाई यह है कि दामिनी के बलिदान ने सोते हुए भारत को जगा दिया है और उसका असर भी सत्ता में बैठी कांग्रेस सरकार ने खुली आँखों से देखा है और वो जान गई है कि इस जागे हुए हिंदुस्तान को अब सुलाना आसान नहीं है.

खैर ...अब तो सरकार क्या आम आदमी भी जान गया है कि अब सोने का समय नहीं रहा, अब जाग गए हैं तो सोने का प्रश्न ही नहीं उठता. दामिनी ने हर भारतीय को बता दिया है कि नारी कि अस्मिता कोई सड़क पर फिका हुआ कागज का टुकड़ा नहीं जिसे कोई भी ठोकर मार कर चल दे. नारी  "देवी माँ ' मानने वाले इस देश को इस घटना ने पूरे विश्व में शर्मसार किया है। जागो भारत जागो।।।।।।।।। 

 कहीं ऐसा न हो कि  इस कडकडाती ठण्ड में सरकार के वायदे भी जम जाएँ और पूरे भारत याद रखें India नहीं भारत फिर से एक बार अपनी ही सरकार के हाथों ठगा जाये ......????


कागज


Friday, January 4, 2013

एक संवाद ...


 कहो सीता से     


फिर कोई राम क्यों आये धरा पर,


फिर कोई रावण क्यों हरे सीता,


स्वयं ही राम क्यों न बना जाये,


मारकर अपने भीतर के रावण को .


कहो सीता से वो भी धर काली का रूप,


संहार करे रावण-महिषासुर से दानवों का।
            -----------------------------------------वीणा सेठी ---------------
ये सन्देश या चेतावनी उन तमाम दानवों के लिए जिनकी निगाहों में नारी का अस्तित्व केवल एक ‘सामान’से अधिक कुछ नहीं.