Sunday, January 1, 2017

ये साल भी अब चला, पर... नोटबंदी अब भी रह गई कहाँ-कहाँ...?

नोटबंदी के बाद भी...





नोटबंदी के बाद पी.एम. के उदगार वो भी 2016 के दरवाजे के बंद होने से पहले आयें हों और उन्हें वे भारत की जनता के लिए उपहारों की पोटली लिए लग रहे हों और जो 2017 के दरवाजे पर बेशक दस्तक देते लग रहे हैं , पर... नोटबंदी के 51 दिनों के बीत जाने के बाद भी इस तरह की बंदी से आम जनता को राहत मिलती नजर नहीं आ रही. 

मोदीजी  के नोटबंदी के फरमान और उसे लागू हुए लगभग 50 दिन बीत चले हैं और काफी कुछ उठा-पटक भी  हुई है. काले धन के लिए छापामारी का जो दौर चला उससे तो लगने लगा था मानों कि अब देश से काला धन बिलकुल ही ख़त्म हो जायेगा. इस काले धन की धर-पकड़ में लगने लगा था कि ये सही  फैसला था, बेशक इस नोटबंदी के चक्रव्यूह में 100 जानों की बलि चढ़ गई हो पर इससे देश की भलाई के लिए देशवासियों की क़ुरबानी के और बैंक में रुपयों के इन्तजार में पिछले 50 दिनों से लम्बी-लम्बी कतारों में बहुत से लोगों के सपनों भी इंतज़ार की  लम्बी कतार खड़ा कर दिया है .


मोदीजी ने नोटबंदी का जो कदम उठाया वो कालेधन को बाहर लाने ले लिए किया....? इस पर अभी भी संदेह के बादल मंडराने बंद नहीं हुए हैं. पहले तो सोचना ये है कि क्या वाकई इससे ऐसा ही होगा...? उसके बाद ये फैसला लेना की भारत की जनता को पूरी तरह से कैशलेस याने बिना पैसे का कर दिया जाए और उसके लिए डिजिटल प्रणाली का उपयोग होगा तो बात समझ से परे है. भारत की जनता जिसमें माध्यम और निम्न वर्ग इस कैशलेस सुविधा का फायदा कैसे उठा सकती है...? जिसे हमेशा से रूपया हाथ में लेकर चलने की आदत हो और एक या दो  रुपये के सौदे के लिए वो बार बार डिजिटल व्यवस्था  का उपयोग करने के चक्कर में अपनी पूंजी कब गवां बैठेगा उसे स्वयं ही पता नहीं चल पायेगा. स्मार्ट कैशलेस व्यवस्था का ये समीकरण केवल मोदीजी  या सरकार में बैठे वे चंद व्यक्ति सी समझ सकते हैं जिन्हें इससे सीधे या परोक्ष तौर पर लाभ मिलेगा.

इन सबके बाद जो गाज आम आदमी पर गिरी है वो कुछ ऐसा ही है जैसे कि सर मुंडाते ही ओले पड़ें . आम आदमी की सारी जमा पूंजी को एक तरह से बैंक में कैद कर उसे अपने ही पैसे से महरूम रखने की मानों साजिश की जा रही हो. उसे बैंक से पैसे निकालने के लिए हदबंदी तय कर दी गई है, और तो और आम भारतीय ग्रहणी के सीक्रेट बैंक पर भी मोदीजी ने सेंध मारी है... अपने पति से छिपा कर पैसे रखने की आम भारतीय नारी की सदियों से ही आदत रही है और वो ये केवल इस लिए करती थी कि मुसीबत या परेशानी के वक्त घर के किसी भी सदस्य को पैसे की मदद कर सके, अब जब अचानक से 500 और 1000 रुपये के नोट को बंद करने की घोषणा हुई तो उनके गुपचुप खाते पति और परिवार के सामने आ गए और अब तो उनका ये साधन भी हाथ से निकल गया है जिसके सहारे वे अपने आप को कहीं न कहीं मजबूत पाती थीं. वे न डिजिटल व्यस्था के बारे में कुछ जानती हैं और न ही वे इसके बारे में समझना चाहेंगी... अपने आप को चूल्हा-चक्की में वे इतना झोंक चुकी हैं की वे इससे अधिक और कुछ नहीं सोचना चाहती.
एक बात और भी चिंताजनक है और वो ये है की हमारे यहाँ साइबर क्राइम को रोकने का कोई सीधा कानून अभी तक नहीं बना है और अभी तो केवल ATM का जिस तरह से अनाप-शनाप उपयोग हो रहा है और साइबर अपराधी जिस तरह से लोंगों के ATM में सेंघमारी कर रहे हैं उस के लिए तो पुलिस के पास कोई सटीक क़ानून और हथियार उपलब्ध नहीं है तो जब पूरे भारत की जनता को digitizazation के हवाले कर दिया जायेगा तो आम आदमी का तो पता नहीं क्या होगा पर साइबर अपराधियों की चांदी तो निश्चित रूप से हो जाएगी.

एक प्रश्न और भी है आखिर आम आदमी जो अपनी रोजी-रोटी की जद्दोजहद में लगा रहता है, का पैसा बैंकों के हवाले क्यों किया जा रहा है...? वो अपना पैसा या पूंजी अपने पास क्यों नहीं रख सकता....? उसके पास कहाँ इतना वक्त है की अपने सफ़ेद पैसे को काला कर सके...? क्या उनका पैसा बैंकों में रोककर कुछ पूंजीपतियों के हवाले कर देने का इरादा है...?

क्या वास्तव में ऐसा करने से काले धन की आवजाही को रोका जा सकेगा....? क्या इससे नकली नोट छापने का धंधा बंद हो जायेगा....? क्या ये नोटबंदी की घोषणा एन उत्तर प्रदेश के चुनाव के पहले करने के पीछे दूसरी राजनितिक पार्टियों के द्वारा काले धन को चुनाव में इस्तेमाल करने से रोकना था...? ये सवाल इस देश की आम जनता के मन में हैं.

कुछ प्रश्न हैं जो मोदीजी के इस कदम को पूरी तरह से उचित नहीं ठहराते.

# काले धन के नाम आम आदमी के ऊपर तो शिकंजा पूरी तरह से कसा जा चुका है और उसे पूरी तरह से खंगालने का काम भी सरकारी तंत्र कर रहा है..ये एक अच्छा कदम हो सकता है यदि ये पूरी तरह से पारदर्शी हो.


# देश के नेता, सरकारी अधिकारी और कुछ एक पूंजीपतियों के ऊपर अभी तक ये शिकंजा नहीं कसा गया है ...क्यों...? वास्तव में वे काले धन के भरपूर स्तोत्र हैं- ये पूरा भारत और वे स्वयं भी जानते हैं. जब तक मोदी जी इनपर अपनी दृष्टि नहीं साधते तब तक उनके इस नेक काम को पूरा देश संशय की निगाह से ही देखेगा और इस विषय पर विपक्ष के राजनितिक दलों द्वारा प्रश्न उठाये जाने पर भी मोदी जी मौन साधे बैठ हैं पर ऐसा कब तक चलेगा...?
बेशक मोदीजी का नोटबंदी पर उठाया कदम सही हो सकता है और इसमें उनका कोई निजी स्वार्थ भी नहीं होगा, पर... उन्हें आम जनता के मन में उठ रहे इन सवालों का जवाब देने सामने आना ही होगा अन्यथा वे आम लोगों के बीच अपनी विश्वसनीयता को दाव पर लगा 
 बैठेंगे.


(वीणा सेठी)


 स्त्रोत्र -गूगल प्लस

2 comments:

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