Monday, April 30, 2012

दो धंधे बड़े ही चंगे.........................भाग 1.


भारत .......धर्मं और राजनीति के धंधे की उर्वरा भूमि.............





आज भारत में दो धंधे सोने की खान साबित हो रहे हैं और ये धंधे बिना लगत याने बिना कैपिटल इन्वेस्टमेंट के हैं और बिना किसी हानि के केवल लाभ ही लाभ हैं. पर........... ये तय करना मुश्किल है की कौन सा धंधा ज्यादा फायदे का है. पर इतना जरुर कहा जा सकता है कि ये कुछ -कुछ तस्करी के जैसा है, इसमें भी बिना कोई दमड़ी लगाये ही फायदा ही फायदा,  धर्मं और राजनीती की सबसे खास  यही  हैं...............
इन दोनों धंधों की सबसे बड़ी योग्यता जो है वो ये है की इसके लिए किसी भी योग्यता की जरुरत नहीं , कोई भी शिक्षा की योग्यता या अतिरिक्त क़ाबलियत की जरुरत नहीं हैकिन्तु कुछ व्यक्तिगत योग्यताओं का होना बहुत ही जरुरी है. ये सोने पर सुह्गे का कम करती है
आइये कुछ पर्सनल योग्यताओं पर एक नजर डाली जाये.........................._------
* लोगों को मुर्ख और बेवकूफ बनाने का गुण आवश्यक है
* थोड़ी धूर्तता, चालबाजी याने आपको दूसरों की आँखों में धूल झोकना आनी चाहिए..
*दूसरों के विश्वास को छलना आना चाहिए
* वायदा करके भूल जाना बहुत जरुर है
* पोल खुलने पर बेशर्मों जैसे खींसे निपोरना आना चाहिए और जब-तब घुटनों के बल बैठकर माफ़ी मांगना आपके गुणों में और भी वृधि करेगा.
* चिकना धड़ा होना बेहद जरुरी है याने आप इस हद तक बेशर्म हो की शर्म भी आपके सामने शर्मसार होकर कहीं छुप जाये
* धर्म के धंधे में तो स्वर्ग और नरक का फर्क आपके समें गौण हो जाना चाहिए


शेष आगे........................................... कृपया इंतजार करें ...इसका मजा ही कुछ और है...

Tuesday, April 17, 2012

भारतीय राजनीति

राजनीति की एक बानगी................कुछ कुछ दूरदर्शन के सीरियलों जैसी......


आप सोच रहे होंगे की भारतीय राजनीति और दूरदर्शन के सीरिअल में क्या रिश्ता है................?? तो इतना बता देना ही काफी है की दोनों में काफी कुछ एक जैसा है
एक बात जो राजनीति के बारे में मशहूर है वह है की राजनीति वो हमाम है जिसमें सारे राजनेता एक दूसरे के सामने अनावृत हैं और एक दूसरे की सचाई से वाकिफ हैऔर भारतीय राजनीति का वही हाल है जो दूरदर्शन की विभिन्न चेनलों पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों का है, जिसे दर्शक मज़बूरी में देखते हैं और जैसे-जैसे कोई सीरियल अपने अंत की ऑर पहुँचने लगता है तो दर्शक चैन की साँस लेने लगतें हैं, यही हल सरकारी राजनीति याने सरकार का होता है, जैसे-जैसे उसके पाँच साल के सत्र का अंत समीप आने लगता है, जनता चैन की साँस लेने लगती है ऑर अगले आम चुनाव की ओर वैसे ही आशा भरी दृष्टि से देखने लगती है जैसे दर्शक नए धारावाहिक की शुरुआत में कुछ नया ओर अच्छा प्रसारित होने की उम्मीद लगाकर बाँट जोहते हैंपर ये उम्मीद ओर आशा नई सरकार ओर नए धारावाहिक से कुछ समय बाद टूटने लगती है , क्या करें..............? हम भारतीय इतने अधिक सहनशील तथा सहिष्णु हैं कि किसी भी सामाजिक मुद्दे के अलावा हर बात में अपनी इस आदत को प्रथा के रूप में अपनाते रहे हैं, अगर विश्वास नहीं है  तो खंगाल लें अपना २००० साला गुलामी से भरा इतिहास......................


Thursday, April 12, 2012

ये कैसा सितम....................???

हम किस युग कि संतान हैं...........??




जीवन के लिए संघर्ष करती नेहा


कल के न्यूज़ चैनेल्स कुछ समाचारों को दिखाया जा रहा है, इसमें नया कुछ ख़ास नहीं है, पर एक-दो समाचार चौकाने वाले थे केवल पहली बार सुनने और देखने कि दृष्टि से ही, दूसरी बार तो रोजमर्रा कि घटना कि तरह लगने लगता है. पर एक समाचार ने खासा चौंकाया और सोचने को विवश कर दिया कि क्या वाकई हम आज इस प्रगतिशील युग में जी रहे हैं .................??

हर संवेदनशील व्यक्ति के जेहन में इस घटना का खाका  जरुर अभी भी खिचा होना चाहिए. एक बार फिर से उस घटनाक्रम पर आती हूँ.
"बात दो दिन पुरानी है, भारत कि एकमात्र कलात्मक, संस्कृतिक और रुचिपूर्ण माने जाने वाले शहर  को इस घटना ने शर्मसार कर दिया. बंगलुरु में एक पिता (फारुख) ने अपनी तीन माह की बेटी नेहा आफरीन को केवल इसलिए मारने की कोशिश की क्योंकि  वह  एक बेटी है.उसकी हैवानियत यही पर नहीं ख़त्म हुई उसने उस मासूम को को मरने के प्रयास में उसका सिर दीवार से दे मारा और उसके  शरीर को  जलती सिगरेट से जलने की कोशिश की और तो और बच्ची के शरीर पर दांत से काटने की निशान भी बने हुए थे. जब बात नहीं बनी तो बच्ची को चुप करने और मरने के लिए छोड़ देने के लिए उसके मुंह  पर तकिया रख दियाऔर उसके मुँह में कपड़ा ठूंस दिया.
बच्ची की मान रेशमा वक्त रहते जाग गई और उसे अस्पताल ले कर आ गई जहाँ उसका इलाज चल रहा था, और कल नेहा जो बड़ी होकर सबपर अपने नेह की वर्षा कर सकती थी , इस दुनिया से विदा हो गई, ये काफी दर्दनाक रहा की अपने पिता की हैवानियत से उसका दिल ज़ार-ज़ार हो गया और इस बात को सह न सका और दिल का दौरा पड़ने से उसकी जान चली गई...........

नेहा तो इस दुनिया से चली गई और इससे पहले भी ऐसी ही कितनी  मासूम बेटियां होने  के गुनाह के कारण इस दुनिया से बिदा की जा चुकी हैं पर उनके साथ इंसानियत को शर्मनाक करने वाली ऐसी हैवानियत करने वालों कोई  कोई भी सजा नहीं होती और वे लोग निडर समाज में घूमते हैं और लोग भी उन्हें सिर-माथे लगाते हैं.

क्या हो गया है इस समाज को और इस देश में रहने वाले लोगों को, जिनकी आत्मा इस तरह की हैवानियत को देखकर नहीं कांपती, हम इतने संवेदनहीन क्यों हो चले हैं कि इस तरह बेटियों  और मासूमों पर होने वाले जुल्म को देखकर भी हमारी चेतना नही जागती, हमारी संवेदना को क्या हो गया है........?, क्यों हमें  कुछ नहीं कचोटता...........??

नारी को देवी मानने वाले देश - क्या नारी केवल पाषाण बन कर ही जिन्दा रह सकती है.........? या केवल घर  का सामान  बनकर.......? उसे इन्सान बनकर जीने का क्या कोई अधिकार नहीं...............?/
आज नेहा ये सवाल हर उस भारतीय से कर रही है जो उससे उसका जीने का अधिकार छीन चुके हैं और जो इसके विरुद्ध कुछ नहीं कह रहे और न कर रहे हैं.

होना तो ये चाहिए कि नेहा जैसी मासूम कि जान लेने  वाले उसके हैवान पिता को सरेआम चौराहे   पर फाँसी दे देनी चाहिए, बेशक लोगों को ये हैवानियत का कम लग सकता है पर हैवानो के लिए इससे अच्छी सजा हो ही नहीं सकती. लोगो को ये तरीका बर्बर लग सकता है, पर बेटियों पर जुल्म ढाने वालों के लिए मै तो इसी सजा को सहमति दूंगी.............
 
 



Tuesday, April 10, 2012

ये कैसा विरोध ...................?

नए कानून का विरोध......................??


आज पूरा मध्य प्रदेश बंद है याने किराना व्यापारियों, होटल वालों और खाद्य पदार्थ बेचने वालों ने खाध्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम २००६ के विरोध में confederation of all India traders के आह्वान पर राज्य के अधिकतर शहरों में आज और अगले २ दिनों कट बंद रहेगा.और बंद का अच्छा खासा असर दिखाई दे रहा है. व्यापारियों को ये काले कानून की तरह दिखाई दे रहा है.वास्तव में अधिकतर व्यापारियों को इस कानून के बारे में सही पता ही नहीं है पर उसका खौफ सिर चढ़ कर बोल रहा है.


वास्तव में इस कानून से आम लोगो को मिलावट से रहत मिलेगी और भ्रष्ट और मिलावटखोर व्यापारियों के विरुद्ध ये कानून तलवार का काम करेगा. ये कानून लागू हो जाने के बाद हर किराना, होटल मालिक ya कोई भी खाद्य पदार्थ बेचने वाले को लाइसेंस बनवाना आवश्यक हो जायेगा.

 ये वास्तव में केंद्र द्वारा उठाया गया एक स्वागतयोग्य कदम है, पर मुश्किल हमारे देश में किसी  कानून के बन जाने के बाद उसके लागू होने में आती है साथ ही  उसमें पारदर्शिता की जरुरत अधिक है.क्योंकि  ये भारत है जहाँ पर कानून का पालन कम उसे का दुरुपयोग अधिक होता है. इसलिए इस कानून के लागू होने में सावधानियां बरतनी आवश्यक है. ये बेहद संवेदनशील कानून है जिसे देख कर लग रहा है की पहली बार सर्कार को भारत की जनता इन्सान लग रही है अन्यथा अभी तक तो भेड़-बकरी से अधिक कुछ नहीं लगती थी.

इस कानून के रखवाले ही इसके भक्षक बन जायेंगे और एक हथियार   की तरह इसका दुरुपयोग करेंगे इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. और फिर से एक और कानून की धज्जियाँ  जिस तरह से उड़ेंगी वह चिंता का विषय है.


हमारे देश में भ्रष्टाचार और मिलावटखोरी चिंता की हद तक पहुच चूका है और ये अपनी सारी सीमाओं को तोड़कर बिलकुल बाढ़ की तरह हमारी नस नस में समां चूका है.ऐसा लगता है हमारी आत्मा तक भ्रष्ट हो चुकी है. जिस देश की आत्मा भ्रष्ट हो जाये उस देश को कोई बच सकेगा इसमें शक है और बचा सकती है तो केवल उस देश की जनता. अब आत्मंथन का समय आ गया है और हमें अपनी आत्मा को और भ्रष्ट होने से बचाना होगा, तभी ये देश बच सकता है.

जागो हे भारत के लोगो और अपनी आत्मा को भी जगाओ.......................!!