Saturday, November 3, 2012

कुर्सी की महिमा

हाय रे ! जालिम ये कुर्सी ..........................





"कुर्सी" शब्द कानों में पड़ते ही आँखों विस्तार का संकेत देने लगती हैं याने वे अचम्भे से फ़ैल जाती हैं और चहरे पर विस्मय और ख़ुशी का भाव आ जाता है। हर व्यक्ति की आँखों में एक पहचान का भाव उमड़ पड़ता है। बड़े क्या /बूढ़े क्या/पुरुष हो या स्त्री, और तो और बच्चे तक भी इस कुर्सी से इस कदर परिचित हैं कि अब वह किसी परिचय की मोहताज नहीं रह गई है.
'कुर्सी ' शब्द कानों में क्या पड़ता है मानों  कानों में रस घुल जाता है,और तो और उसके आनंद में आँखे बंद होकर उसका स्वप्न जागी आँखों से देखने लगती हैं। कुर्सी का  जादुई स्पर्श बिल्कुल ऐसा है जैसे परस छूकर लोहे जी सोना बना दे, अगर हमारी  बात पर भरोसा नहीं है तो एक बात उस पर बैठ कर देखिये अगर उसके जादुई स्पर्श से आप भी उसके रंग में न रंग जाएँ तो कहना।..!

आइये आज जान ही लें क्यों लोग कुर्सी के आकर्षण में अपनी सुधबुध खो देते हैं:-

# कहते हैं ना  कि किसी किसी भी  चीज का मोह बुरा होता है और उसकी अति तो और भी बुरी  होती है।  पर कुर्सी की तो मिसाल ही अलग है, ये तो जब ही पता लगता है जब आप कुर्सी पर बैठेंगे.पर एक बात तो है कुर्सी भारत के संविधान की प्रस्तावना में वर्णित 'secular' को पूरी तरह से सार्थक करती है। याने इस पर जो चाहे बैठ सकता है।

# 'कुर्सी' एक  चुंबक की तरह  है, जिसकी तरफ हर कोई खीचा चला आता है।इस पर बैठने से पहले एक आम आदमी आम ही रहता  है, पर कुर्सीनशीं  होते ही वह स्वयं में ही विशिष्ट हो जाता है उसका रुतबा 5स्टारी हो जाता है, वह आम आदमी की तरह  बंद कर  है, जिस  और कारण और नाम के लिए वह कुर्सी बनी होती है, वह वही गुण  ग्रहण कर लेता है।  उसका पूरी तरह से कायापलट हो चूका होता है।  ये परिवर्तन वाकई हैरतअंगेज होता है, और जैसे जैसे दिन बीतते  जाते हैं वह उसके रंग में रंगता जाता है। आपका कितना भी आत्मीय न हो एक बार कुर्सी पर  बैठने के बाद वह निश्चित पर  जान लीजिये कि वह 'कुर्सी' की भेंट चढ़ चुका है ... अब आप अपने प्रिय दोस्त को खो चुके हैं , आप चाहें तो गाना गा सकते हैं---" दोस्त-दोस्त न   ..." अब वह आपको तभी वापस मिलेगा जब स्थायी  तौर  पर कुर्सी त्याग चुका होगा। 

हमारे देश में तो "कुर्सी" का मोह कहो या कुर्सी का लोगों से मोह कहो जग जाहिर है ..."  देखिये तभी तो आजादी के 65 सालों बाद भी कुर्सी ने "नेहरू-गाँधी" परिवार का आज तक साथ नहीं छोड़ा, और देश को बार-बार प्रधानमंत्री ढूंढने की जहमत से बचा लिया।
" कुर्सी " की महिमा के बारे में और क्या बताऊँ ... आप सभी वाकिफ हैं।


                                                                                                                                
                                                                                                                      वीणा  सेठी 

   
                                                                     

5 comments:

  1. वाह कुर्सी की महिमा बखूबी बयान की आपने । सच कहा आपने ये कुर्सी बहुत बडी चीज़ है जाने क्या क्या किसमें बदल कर रख देती है । कमाल की पोस्ट । बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
    जरूरी है दिल्ली में पटाखों का प्रदूषण

    ReplyDelete
  2. bahut khoob kursi ki mahima anant hai....

    ReplyDelete
  3. सब कुर्सी का ही चक्कर है...बहुत सार्थक आलेख...

    ReplyDelete
  4. बहुत सार्थक रचना सच में कुर्सी में कोई जादुई आकर्षण तो हैं बहुत बधाई इस रचना के लिए

    ReplyDelete