सुनो छोटी सी गुड़िया की ये दुःखभरी कहानी ...
"गुडिया" के साथ जो कुछ इंसानियत को शर्मसार करनेवाला हुआ वो यहीं तक नहीं थमा, पुलिस भी अपनी दरिंदगी दिखाने से बाज नहीं और उसने F I R दर्ज करने की बजाये परिवार वालों पर ये कहकर दवाब डाला कि 2000रू ले ले और मामला रफादफा करे. लगता है दिल्ली पुलिस में मानवता, संवेदनशीलता ख़त्म हो गई है. बात ज़ब मीडिया में आई तब जाकर पुलिस की आँख खुली और आननफानन में रिपोर्ट दर्ज की गई। और पूरे देश में अब जो आक्रोश की लहर फैली है वह एक जनान्दोलन की शक्ल अख्तियार करती जा रही है जो अब जरुरी है, नहीं तो लगेगा की खून का रंग सफ़ेद हो चुका है.पर ... लगता है क्या ऐसा करने से हमारे अन्दर का हैवान खत्म हो जायेगा ...??? क्या आपको नहीं लगता अब बहुत हो चुका ...? अब तो केवल एक बन्दुक और गोली की दरकार है और जो भी हैवानियत दिखा रहा है उसके सीने पर दाग दो, नहीं तो उसके हाथ पाँव काटकर फेक दो ताकि सारी उम्र अपने गुनाह को याद करके जिए जिए और रोज मर मर के जिये। क्या आप ...ऐसा नहीं चाहते … ??? मै तो ऐसा ही चाहती हूँ ...
अभी लगता है और भी कुछ और भी बाकि था, कुछ और मासूमों की मासूमियत कुचली जानी बाकि थी जिसका जिक्र करना फिर से इंसानियत को शर्मिंदा करना है ... पर सवाल ये है कि आखिर ये सब कब थमेगा ...??? हमारे हुक्मरानों के सर पर जूं नहीं रेगने वाली और उन्हें तो आम आदमी की तरह सड़क पर नहीं चलना पड़ता है और न ही वे इन मासूम का दर्द समझ सकते, जब तक खुद के घर में आग नहीं लगेगी.
देश में पिछले २-3 दिनों से कुछ और मासूम गुड़ियाँ हैवानियत का शिकार हुई हैं और राजनितिक दल और केंद्र में बैठी सरकार के लोग केवल अपनी प्रतिक्रियाएँ देने में ही व्यस्त हैं।
जब तक अमानवीय, पाशविक,हैवानियत से इतर कुछ होता नहीं इस देश के लोंगों की नींद नहीं खुलती, और हम भी क्या करें हजार पिछले २ हजार सालों से हमें जुल्म सहने की इतनी इतनी आदत पड़ चुकी है कि हम चुपचाप रहना अधिक पसंद करते हैं और अब तो हमारी संवेदना भी इतनी कुंद चुकी है कि किसी घटना का हम पर अब कोई प्रभाव भूले से भी नहीं पड़ता, वास्तव में हम ऐसे समाज में जी रहे हैं जो मानसिक रूप से बीमार है। और यही कारण है कि पिछले 2 हजार सालों से भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा है और अब तो ये जकड़न आदत सी हो गई है, जिसके चलते हम भूल गए हैं कि हम एक जिन्दा समाज में जीते हैं और हम इंसान हैं। भारत जैसा देश जहाँ नारी को "देवी " के रूप में पूजा जाता हैं उसी देश में नन्ही बेटियों को पुरुष अपनी लम्पटता के चलते अपनी हवस का शिकार बना रहा है, ये लानत की बात है पर कोई समझे तो सही इस बात को।
अब यदि वाकई ये देश है तो अब इसे सोना नहीं चहिये। अभी जरुरत है ऐसे इंसानियत से गिरे पाशविक हादसों को रोकने की ... पर इसके लिए जो सबसे जरुरी है वो है "नारी के प्रति अपनी आदिम सोच को बदलने की क्योंकि वह कोई वस्तु नहीं इन्सान है और जिसे आजादी से जीने का हक़ है . ये हर नारी क्या हर मासूम गुडिया को तय करने दें कि वो उड़ना चाहती है तो उसके लिए खुला आसमान हमने तैयार करके देना है जहाँ कोई चिल या गिद्द उसकी उड़ान न रोक सके उसके जिस्म पर अपने पंजे न गड़ा सके और न ही उसकी आत्मा लहूलुहान कर सके.
आइये अपने मासूमों को एक ऐसा स्वस्थ्य सोच वाला भारत दें .
"गुडिया" के साथ जो कुछ इंसानियत को शर्मसार करनेवाला हुआ वो यहीं तक नहीं थमा, पुलिस भी अपनी दरिंदगी दिखाने से बाज नहीं और उसने F I R दर्ज करने की बजाये परिवार वालों पर ये कहकर दवाब डाला कि 2000रू ले ले और मामला रफादफा करे. लगता है दिल्ली पुलिस में मानवता, संवेदनशीलता ख़त्म हो गई है. बात ज़ब मीडिया में आई तब जाकर पुलिस की आँख खुली और आननफानन में रिपोर्ट दर्ज की गई। और पूरे देश में अब जो आक्रोश की लहर फैली है वह एक जनान्दोलन की शक्ल अख्तियार करती जा रही है जो अब जरुरी है, नहीं तो लगेगा की खून का रंग सफ़ेद हो चुका है.पर ... लगता है क्या ऐसा करने से हमारे अन्दर का हैवान खत्म हो जायेगा ...??? क्या आपको नहीं लगता अब बहुत हो चुका ...? अब तो केवल एक बन्दुक और गोली की दरकार है और जो भी हैवानियत दिखा रहा है उसके सीने पर दाग दो, नहीं तो उसके हाथ पाँव काटकर फेक दो ताकि सारी उम्र अपने गुनाह को याद करके जिए जिए और रोज मर मर के जिये। क्या आप ...ऐसा नहीं चाहते … ??? मै तो ऐसा ही चाहती हूँ ...
अभी लगता है और भी कुछ और भी बाकि था, कुछ और मासूमों की मासूमियत कुचली जानी बाकि थी जिसका जिक्र करना फिर से इंसानियत को शर्मिंदा करना है ... पर सवाल ये है कि आखिर ये सब कब थमेगा ...??? हमारे हुक्मरानों के सर पर जूं नहीं रेगने वाली और उन्हें तो आम आदमी की तरह सड़क पर नहीं चलना पड़ता है और न ही वे इन मासूम का दर्द समझ सकते, जब तक खुद के घर में आग नहीं लगेगी.
देश में पिछले २-3 दिनों से कुछ और मासूम गुड़ियाँ हैवानियत का शिकार हुई हैं और राजनितिक दल और केंद्र में बैठी सरकार के लोग केवल अपनी प्रतिक्रियाएँ देने में ही व्यस्त हैं।
जब तक अमानवीय, पाशविक,हैवानियत से इतर कुछ होता नहीं इस देश के लोंगों की नींद नहीं खुलती, और हम भी क्या करें हजार पिछले २ हजार सालों से हमें जुल्म सहने की इतनी इतनी आदत पड़ चुकी है कि हम चुपचाप रहना अधिक पसंद करते हैं और अब तो हमारी संवेदना भी इतनी कुंद चुकी है कि किसी घटना का हम पर अब कोई प्रभाव भूले से भी नहीं पड़ता, वास्तव में हम ऐसे समाज में जी रहे हैं जो मानसिक रूप से बीमार है। और यही कारण है कि पिछले 2 हजार सालों से भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा है और अब तो ये जकड़न आदत सी हो गई है, जिसके चलते हम भूल गए हैं कि हम एक जिन्दा समाज में जीते हैं और हम इंसान हैं। भारत जैसा देश जहाँ नारी को "देवी " के रूप में पूजा जाता हैं उसी देश में नन्ही बेटियों को पुरुष अपनी लम्पटता के चलते अपनी हवस का शिकार बना रहा है, ये लानत की बात है पर कोई समझे तो सही इस बात को।
अब यदि वाकई ये देश है तो अब इसे सोना नहीं चहिये। अभी जरुरत है ऐसे इंसानियत से गिरे पाशविक हादसों को रोकने की ... पर इसके लिए जो सबसे जरुरी है वो है "नारी के प्रति अपनी आदिम सोच को बदलने की क्योंकि वह कोई वस्तु नहीं इन्सान है और जिसे आजादी से जीने का हक़ है . ये हर नारी क्या हर मासूम गुडिया को तय करने दें कि वो उड़ना चाहती है तो उसके लिए खुला आसमान हमने तैयार करके देना है जहाँ कोई चिल या गिद्द उसकी उड़ान न रोक सके उसके जिस्म पर अपने पंजे न गड़ा सके और न ही उसकी आत्मा लहूलुहान कर सके.
आइये अपने मासूमों को एक ऐसा स्वस्थ्य सोच वाला भारत दें .
आज की ब्लॉग बुलेटिन भारत की 'ह्यूमन कंप्यूटर' - शकुंतला देवी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDelete.एक एक बात सही कही है आपने . जिम्मेदारी से न भाग-जाग जनता जाग" .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-2
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