इक लड़की
मुस्कराहट,
उसकी आँखों से उतर;
ओठों को दस्तक देती;
कानों तक फ़ैल गई थी.
जो
उसकी सच्चाई की जीत थी.
और
उसकी उपलब्धि से आई थी.
वो थी,
इक लड़की.
उसे कदम-कदम पर
ये बात
याद कराई जाती थी.
बहुत बार वह;
निराश-हताश हो,
लौट जाने की सोचती.
पर...
हर बार उसे
माँ की बात याद आती थी.
“बेटी...!
जीत सको तो;
पहले
अपने अंदर की
कमजोरी को जीतना.
कभी ये मत सोचना
तुम इक लड़की हो...
याद रखना...,
और
आधी लड़ाई तो,
पहले ही जीत जाओगी...
बची आधी तो
वैसे ही जीतोगी...
जब,
लक्ष्य सामने नजर आये
तो...
अर्जुन बन उसे बेध देना.
फिर देखना,
समय
और तुम्हारे चारों ओर बहता
सब थम जाएगा.
और
करतल ध्वनियों का कोलाहल
तुम्हारी सफलता को
एक आयाम दे जायेगा”.
वीणा सेठी
it is very intresting post it will bbe written in Technology Write For Us
ReplyDeleteGreat article. Your blogs are unique and simple that is understood by anyone.
ReplyDelete