Thursday, April 12, 2012

ये कैसा सितम....................???

हम किस युग कि संतान हैं...........??




जीवन के लिए संघर्ष करती नेहा


कल के न्यूज़ चैनेल्स कुछ समाचारों को दिखाया जा रहा है, इसमें नया कुछ ख़ास नहीं है, पर एक-दो समाचार चौकाने वाले थे केवल पहली बार सुनने और देखने कि दृष्टि से ही, दूसरी बार तो रोजमर्रा कि घटना कि तरह लगने लगता है. पर एक समाचार ने खासा चौंकाया और सोचने को विवश कर दिया कि क्या वाकई हम आज इस प्रगतिशील युग में जी रहे हैं .................??

हर संवेदनशील व्यक्ति के जेहन में इस घटना का खाका  जरुर अभी भी खिचा होना चाहिए. एक बार फिर से उस घटनाक्रम पर आती हूँ.
"बात दो दिन पुरानी है, भारत कि एकमात्र कलात्मक, संस्कृतिक और रुचिपूर्ण माने जाने वाले शहर  को इस घटना ने शर्मसार कर दिया. बंगलुरु में एक पिता (फारुख) ने अपनी तीन माह की बेटी नेहा आफरीन को केवल इसलिए मारने की कोशिश की क्योंकि  वह  एक बेटी है.उसकी हैवानियत यही पर नहीं ख़त्म हुई उसने उस मासूम को को मरने के प्रयास में उसका सिर दीवार से दे मारा और उसके  शरीर को  जलती सिगरेट से जलने की कोशिश की और तो और बच्ची के शरीर पर दांत से काटने की निशान भी बने हुए थे. जब बात नहीं बनी तो बच्ची को चुप करने और मरने के लिए छोड़ देने के लिए उसके मुंह  पर तकिया रख दियाऔर उसके मुँह में कपड़ा ठूंस दिया.
बच्ची की मान रेशमा वक्त रहते जाग गई और उसे अस्पताल ले कर आ गई जहाँ उसका इलाज चल रहा था, और कल नेहा जो बड़ी होकर सबपर अपने नेह की वर्षा कर सकती थी , इस दुनिया से विदा हो गई, ये काफी दर्दनाक रहा की अपने पिता की हैवानियत से उसका दिल ज़ार-ज़ार हो गया और इस बात को सह न सका और दिल का दौरा पड़ने से उसकी जान चली गई...........

नेहा तो इस दुनिया से चली गई और इससे पहले भी ऐसी ही कितनी  मासूम बेटियां होने  के गुनाह के कारण इस दुनिया से बिदा की जा चुकी हैं पर उनके साथ इंसानियत को शर्मनाक करने वाली ऐसी हैवानियत करने वालों कोई  कोई भी सजा नहीं होती और वे लोग निडर समाज में घूमते हैं और लोग भी उन्हें सिर-माथे लगाते हैं.

क्या हो गया है इस समाज को और इस देश में रहने वाले लोगों को, जिनकी आत्मा इस तरह की हैवानियत को देखकर नहीं कांपती, हम इतने संवेदनहीन क्यों हो चले हैं कि इस तरह बेटियों  और मासूमों पर होने वाले जुल्म को देखकर भी हमारी चेतना नही जागती, हमारी संवेदना को क्या हो गया है........?, क्यों हमें  कुछ नहीं कचोटता...........??

नारी को देवी मानने वाले देश - क्या नारी केवल पाषाण बन कर ही जिन्दा रह सकती है.........? या केवल घर  का सामान  बनकर.......? उसे इन्सान बनकर जीने का क्या कोई अधिकार नहीं...............?/
आज नेहा ये सवाल हर उस भारतीय से कर रही है जो उससे उसका जीने का अधिकार छीन चुके हैं और जो इसके विरुद्ध कुछ नहीं कह रहे और न कर रहे हैं.

होना तो ये चाहिए कि नेहा जैसी मासूम कि जान लेने  वाले उसके हैवान पिता को सरेआम चौराहे   पर फाँसी दे देनी चाहिए, बेशक लोगों को ये हैवानियत का कम लग सकता है पर हैवानो के लिए इससे अच्छी सजा हो ही नहीं सकती. लोगो को ये तरीका बर्बर लग सकता है, पर बेटियों पर जुल्म ढाने वालों के लिए मै तो इसी सजा को सहमति दूंगी.............
 
 



1 comment:

  1. Sach me bahut hi dardnaak ghatna hai ye....neha ke pita jaise logo ko to tadpa-tadpa kar maarna chahiye...

    ReplyDelete