राजनीति की एक बानगी...कुछ कुछ दूरदर्शन के सीरियलों जैसी...
आप सोच रहे होंगे की भारतीय राजनीति और दूरदर्शन के सीरिअल में क्या रिश्ता है...?? तो इतना बता देना ही काफी है की दोनों में काफी कुछ एक जैसा है।
एक बात जो राजनीति के बारे में मशहूर है वह है की राजनीति वो हमाम है जिसमें सारे राजनेता एक दूसरे के सामने अनावृत हैं और एक दूसरे की सचाई से वाकिफ है। और भारतीय राजनीति का वही हाल है जो दूरदर्शन की विभिन्न चेनलों पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों का है, जिसे दर्शक मज़बूरी में देखते हैं और जैसे-जैसे कोई सीरियल अपने अंत की ऑर पहुँचने लगता है तो दर्शक चैन की साँस लेने लगतें हैं, यही हल सरकारी राजनीति याने सरकार का होता है, जैसे-जैसे उसके पाँच साल के सत्र का अंत समीप आने लगता है, जनता चैन की साँस लेने लगती है ऑर अगले आम चुनाव की ओर वैसे ही आशा भरी दृष्टि से देखने लगती है जैसे दर्शक नए धारावाहिक की शुरुआत में कुछ नया ओर अच्छा प्रसारित होने की उम्मीद लगाकर बाँट जोहते हैं । पर ये उम्मीद ओर आशा नई सरकार ओर नए धारावाहिक से कुछ समय बाद टूटने लगती है , क्या करें..............? हम भारतीय इतने अधिक सहनशील तथा सहिष्णु हैं कि किसी भी सामाजिक मुद्दे के अलावा हर बात में अपनी इस आदत को प्रथा के रूप में अपनाते आ रहे हैं, अगर विश्वास नहीं है तो खंगाल लें अपना २००० साला गुलामी से भरा इतिहास............
आप सोच रहे होंगे की भारतीय राजनीति और दूरदर्शन के सीरिअल में क्या रिश्ता है...?? तो इतना बता देना ही काफी है की दोनों में काफी कुछ एक जैसा है।
एक बात जो राजनीति के बारे में मशहूर है वह है की राजनीति वो हमाम है जिसमें सारे राजनेता एक दूसरे के सामने अनावृत हैं और एक दूसरे की सचाई से वाकिफ है। और भारतीय राजनीति का वही हाल है जो दूरदर्शन की विभिन्न चेनलों पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों का है, जिसे दर्शक मज़बूरी में देखते हैं और जैसे-जैसे कोई सीरियल अपने अंत की ऑर पहुँचने लगता है तो दर्शक चैन की साँस लेने लगतें हैं, यही हल सरकारी राजनीति याने सरकार का होता है, जैसे-जैसे उसके पाँच साल के सत्र का अंत समीप आने लगता है, जनता चैन की साँस लेने लगती है ऑर अगले आम चुनाव की ओर वैसे ही आशा भरी दृष्टि से देखने लगती है जैसे दर्शक नए धारावाहिक की शुरुआत में कुछ नया ओर अच्छा प्रसारित होने की उम्मीद लगाकर बाँट जोहते हैं । पर ये उम्मीद ओर आशा नई सरकार ओर नए धारावाहिक से कुछ समय बाद टूटने लगती है , क्या करें..............? हम भारतीय इतने अधिक सहनशील तथा सहिष्णु हैं कि किसी भी सामाजिक मुद्दे के अलावा हर बात में अपनी इस आदत को प्रथा के रूप में अपनाते आ रहे हैं, अगर विश्वास नहीं है तो खंगाल लें अपना २००० साला गुलामी से भरा इतिहास............
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16-4-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1948 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
धन्यवाद...! हौसलाफजाई के लिए.
Deleteजनता कहाँ कभी चैन की साँस लेती हैं ..पांच साल बाद फिर वही हाल .....और इधर सीरियल ख़त्म तो नया शुरू ...
ReplyDeleteये भारत है ...पब्लिक है जो सब जानती है.
Deleteसुन्दर प्रस्तुति .बहुत खूब,.आपका ब्लॉग देखा मैने कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
ReplyDeleteधन्यवाद आपको ब्लॉग पसंद आया.
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