भारत हमारे देश का नाम है, इसे हम जानते हैं. पर इस भारत के भीतर भी एक भारत है जिसे हम उसके बाह्य रूप से भी अधिक अच्छी तरह जानते तो हैं पर न जानने का दिखावा करते हैं. क्योंकि ये वो भारत है जो हमारी वास्तविकता है हमारी दुखती रग है, पर हम इस असलियत से शुतुरमुर्ग की मुंह चुराते फिर रहे हैं. ये हमारी पुरानी आदत है जिसे हम छोड़ना नहीं चाहते. मेरा यही प्रयास रहेगा की हम असलियत का सामना करना और अपने प्रति होने वाले अन्याय का प्रतिकार करना सीख जाएँ, यदि एक कदम भी कहीं उठा तो मै स्याम को धन्य मानूंगी.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (18-03-2014) को "होली के रंग चर्चा के संग" (चर्चा मंच-1555) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
कामना करता हूँ कि हमेशा हमारे देश में
परस्पर प्रेम और सौहार्द्र बना रहे।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'